हमारी स्वास्थ्य सेवाएं
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किसी देश की जनता के स्वास्थ्य का संबंध उस देश के विकास से होता है। विकास यानी आर्थिक प्रगति। जब जनता स्वस्थ्य होगी तो उत्पादकता बढ़ेगी। उत्पादकता बढ़ेगी तो आर्थिक विकास दर बढ़ेगी और स्पष्टतः देश प्रगति करेगा।हमारा देश कुछ उन देशों में से एक है, जहाँ संक्रामक व असंक्रामक रोगों की भरमार है। इन सबके लिए स्वास्थ्य सेवाओं की पर्याप्त सुविधा का होना अत्यंत आवश्यक है।
संविधान ने भी अपने भाग 4 में राज्य सरकारों को नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत जनता के स्वास्थ्य के सुधार के लिए उचित पोषण एवं जीवन स्तर के विकास की जिम्मेदारी दी है। हाँलाकि सभी दलों में इस बात पर आम सहमति होते हुए भी कोई भी दल हमारी विशाल जनसंख्या को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाया। इन सबके पीछे कुछ कारण हैं।
- स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में ही बहुत कमी है। जनसंख्या के अनुपात में अस्पतालों की संख्या, स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं चिकित्सकों की बहुत कमी है। एक रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत चिकित्सक एवं 75 प्रतिशत स्वास्थ्य केंद्र भी मिलकर केवल 28 प्रतिशत जनसंख्या का ही इलाज कर पाते हैं। सरकार का अधिक ध्यान बीमारियों को रोकने के लिए स्वच्छता एवं पर्यावरणीय प्रदूषण पर रहता है। निश्चित रूप से यह सराहनीय है, परंतु जनता की मांग के अनुरूप पूर्ति नहीं हो पा रही है।
- स्वास्थ्य सेवाओं का बजट बहुत कम है। भारत में विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। इस अनुपात में स्वास्थ्य सेवाओं पर सिर्फ 1 प्रतिशत खर्च किया जाता है। हमारे कुल जीडीपी का मात्र 1 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है। विश्व में यह शायद न्यूनतम है। यह राशि भी राज्यों को समय पर नहीं दी जाती है। अगर दी भी जाती है, तो आगे उसका वितरण किस प्रकार और किस भ्रष्टाचारी तरीके से होता है, इसे सब जानते हैं। मानव संसाधन के अभाव में स्वास्थ्य विशेषज्ञों की क्षमता को बढ़ाने के लिए दी गई धनराशि भी व्यर्थ ही जाती है।
- असंख्य कानून एवं नियमों के चलते इस क्षेत्र में प्रशासकीय ढीलापन भी देखने में आता है। इन कानूनों के कारण सरकारी स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों, चिकित्सा उपकरणों, दवाई कंपनियों एवं अस्पतालों का अभाव है। ऐसे कानूनों से ऊपर उठकर ही पूरी जनता को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं देने के बारे में सोचा जा सकता है। निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में निहित भ्रष्टाचार भी इस क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी बाधा है।
- बीमारियों की सही समय पर पहचान और उनके प्रति जागरुकता की कमी के कारण समस्या कठिन होती जा रही है। पोलियो के उन्मूलन के लिए सरकार ने जिस तेजी और कड़ाई से अपना अभियान चलाया, उसने आखिर जीत दिला ही दी। श्रीलंका सरकार की मलेरिया उन्मूलन में दिखाई तत्परता से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। हमारे कमजोर वर्ग की जनता को बीमारियों से बचाने के लिए एक उच्च भावना के साथ काम करने की आवश्यकता है। बीमारियों के बदलते पैटर्न और एंटीबॉयटिक के प्रति बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए इन पर पहल करने की जरूरत है।
जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमत्र्य सेन भी लगातार जोर देते रहे हैं कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किसी एकीकृत एक्शन प्लान की सख्त आवश्यकता है। उनका मानना है कि आर्थिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक प्रगति भी उतनी ही आवश्यक है। यदि हम चीन और भारत के आर्थिक विकास की तुलना करें, तो चीन के आर्थिक विकास का बहुत बड़ा कारण उसका स्वास्थ्य एवं शिक्षा में निवेश करना रहा है। इसी प्रकार मेजी सुधारवाद के बाद जापान ने जिस प्रकार प्रगति की, उसका श्रेय भी उसके शिक्षा एवं स्वास्थ्य में अधिक निवेश को दिया जाता है। भारत को भी अपने नागरिकों को विश्व की स्पर्धा में आगे लाने के लिए उन्हें स्वास्थ्य-उपहार देना होगा।
‘द हिंन्दू’ में अमित कपूर के लेख पर आधारित