सड़क, पानी, बिजली और पर्यावरण

Afeias
23 Sep 2016
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2990534814_facc9bb6ebDate: 23-09-16

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सड़क, बिजली तथा पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं शहरी जीवन के लिए जितनी आवश्यक हैं, उतनी ही ग्रामीण जीवन के लिए भी हैं। भारत के सुदूर घास के मैदानों एवं रेगिस्तान में इन सुविधाओं का लंबे समय तक अभाव रहा है। परंतु अब वर्तमान सरकार ने लगभग छः लाख ग्रामों तक बिजली का जाल बिछाने का लक्ष्य रखा है। इसी प्रकार लगभग 1.7 लाख गाँव सड़कों से जोड़े जा चुके हैं। 80 हजार वर्ग कि.मी. भूमि में सिंचाई के लिए नवीन परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। उम्मीद की जा रही है कि अब उन अछूते ग्रामीण क्षेत्रों में जल्द ही मूलभूत सुविधाओं की शुरुआत हो जाएगी।अफसोस इस बात का है कि इन विकास परियोजनाओं में हमारे वन एवं उनमें रहने वाले वन्य पशु एवं पक्षी नष्ट हो रहे हैं। वे तेजी से हो रहे विकास कार्यों के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं और नष्ट होने के कगार पर हैं। रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाए जाने वाले पक्षियों की संख्या अब मात्र 200 रह गई है।

जिन लोगों ने कच्छ या थार के क्षेत्रों में एक दशक पहले यात्रा की हो, वे इस सच्चाई को अब वहाँ आए बदलावों को देखकर समझ सकते हैं। थार में इंदिरा गाँधी नहर परियोजना एवं कच्छ में बोरवेल परियोजना के चलते, जो खेती केवल मानसून पर निर्भर थी, अब उसे बारहमासी करने की कोशिश की जा रही है। इससे लोमड़ी तथा बाहरसिंगा जैसे पशुओं के रहने की समस्या आ गई है। बिजली के तारों के जाल से पक्षियों के उड़ने के लिए पर्याप्त जगह नहीं रही है। वे अक्सर इन तारों में उलझकर बिजली के झटकों का शिकार बन रहे हैं।थार रेगिस्तान में बस्टर्ड पक्षियों के मुख्य आवासीय क्षेत्र-साम, मोखला एवं कच्छ में नलिया और विट्टा को नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए चुना गया है। 2020 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने का अर्थ है कि यहाँ के दो हजार वर्ग किमी. क्षेत्र में सौर पैनल लगाए जाएंगे।

आधुनिकीकरण के साथ पर्यावरण को बचाने के समाधान क्या हैं एवं वे कितने कारगार हैं?

  • भारतीय पर्यावरण कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि मूलभूत संरचना से जुड़ी किसी भी परियोजना को अनुमति देने से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले उनके प्रभाव को जाँच लिया जाए।
  • समस्या यह है कि वन केंद्रित पर्यावरणीय प्रशासन घास के मैदानों एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों को संरक्षण के योग्य ही नहीं समझता। यह धारणा पुरातन उपनिवेशवादी सोच का परिणाम है। ब्रिटिश काल में इन रेगिस्तानी क्षेत्रों एवं घास के मैदानों को वेस्टलैण्ड की श्रेणी में रखा गया था। यह समझने की आवश्यकता है कि यही अनुपयोगी भूमि जैव-विविधता का संरक्षण करती है एवं उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी पूर्ति किसी भी प्रकार से नहीं की जा सकती है।
  • ग्याहरवीं पंचवर्षीय योजना में घास के मैदानों एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों को पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन एवं संरक्षित भूमि के अंतर्गत लाने पर विचार करने की सिफारिश की गई थी।
  • सिफारिश में ‘संरक्षित भूमि’ वाले भाग पर ध्यान केंद्रित किया गया है। पक्षी तो अपने व्यापक अभियान में उलझे किसी भूभाग पर केंद्रित नहीं रहते। वन्य-जीवन को बचाने के लिए जैव-विविधता के बाहुल्य वाले असंरक्षित क्षेत्रों की भी उचित व्यवस्था करने की मांग की गई है।
  • सौर ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने के संबंध में भी कई जैव विविधिता संरक्षण एजेंसियों ने उनके आवास को बचाने की पहल की है।
  • राज्य वन विभाग, राजस्व विभाग, ऊर्जा विभाग तथा पवन एवं सौर ऊर्जा विभागों ने पक्षियों के आवासीय क्षेत्र को बचाकर ही परियोजनाओं के विकास के प्रति सहमति जताई है।
  • वस्तुतः वन्य जीवन संरक्षण के साथ ग्रामीण विकास का कार्य एक बड़ी चुनौती है।

इंडियन एक्सप्रेसमें सुतीर्थ दत्त के लेख पर आधारित।

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