भ्रातृत्व, जीवन का अधिकार और पर्यावरण

Afeias
11 Feb 2021
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Date:11-02-21

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संविधान की प्रस्तावना के ये शब्द न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व-सामाजिक लोकतंत्र की प्राप्ति के लिए हमें  चुनौतीपूर्ण मार्ग की याद दिलाते रहते हैं। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हम यह जानते हैं कि बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग तमाम वन समुदायों जैसी सुविधाओं से वंचित नागरिकों को अवसर की समानता से दूर रख सकती है। यह स्पष्ट है कि अगर हम पृथ्वी के गर्म होते वातावरण को कम करने का प्रयास नहीं करते, तो भारत में बड़े पैमाने पर बाढ, सूखा, हीट वेव और अप्रत्याशित वर्षा की घटनाएं होने लगेंगी। इस महामारी ने स्वास्थ्य और वित्तीय प्रणाली पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की एक झलक मात्र दी है।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए संविधान के भ्रातृत्व जैसे शब्द भारतीयों को याद दिलाते हैं कि कैसे हम भारतीय परस्पर संबंधों के सहारे समग्र और समान समाज की स्थापना कर सकते हैं। यह कुछ ऐसा है, जिसे हम विभाजनकारी मानसिकता के घेरे में आसानी से भूल जाते हैं, और आपदा एवं त्रासदी के दौरान एकजुटता के लिए याद कर लेते हैं। विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और ‘व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करने’ की दिशा में संसाधनों को निर्देशित करने के लिए भारत में बंधुत्व का बहुत महत्व हो सकता है। यह व्यापार-व्यवसाय, परोपकार और नवाचार को प्रोत्साहित करने, राज्य की भूमिका को पूरक बनाने तथा नागरिकों के विधायी अधिकारों को सुरक्षित करके लचीला बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जलवायु की रक्षा पर होने वाले निवेश से नए समाधान निकाले जा सकते हैं। राजनीतिक तौर-तरीकों में परिवर्तन लाया जा सकता है। महामारी से बाहर निकलने के मार्ग के अनुसरण से हम संक्रमणकाल को ग्रीन और न्यायपूर्ण बना सकते हैं। भले ही आज कुछ अवसरों को हम पीछे की कतार में रखते हों, परंतु रोजगार, विकास और धारणीयता के पटल पर कल वे ही मुख्य धारा बनाए जा सकते हैं।

इनमें स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग मुख्य बिंदु है। जलवायु-अनुकूल विकास में देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का भारी हाथ होता है। यह करोड़ों भारतीयों के जीवन को बदलने की क्षमता रखता है। यदि हम स्वच्छ ऊर्जा उपकरणों से संचालित ग्रामीण आजीविका की कल्पना करें, जो अनाज.क्रशर और कोल्ड चेन जैसे विद्युत के विकेन्द्रीकृत साधनों तक उनकी पहुँच बनाती है।

हमारे देश का कल्याण टूटी अर्थव्यवस्था और टूटी पारिस्थितिकी को ठीक करने पर निर्भर करता है। हमें भविष्य और वर्तमान की वंचनाओं के बारे में सोचने के लिए लोगों को लैस और प्रोत्साहित करना चाहिए। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च का अध्ययन बताता है कि अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार की अब पर्यावरण के अधिकार के रूप में तेजी से व्याख्या की जाने लगी है। जब हम इसे अनुच्छेद 48ए और 51 (ए) जी के साथ जोड़कर देखते हैं, तो यह पर्यावरण की रक्षा के लिए स्पष्ट संवैधानिक जनादेश दिखाई देता है, जो आने वाले दशकों में नागरिकों, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के लिए अधिक महत्वपूर्ण होगा।

इन विचारों के लिए भारत को जलवायु-केंद्रित कार्य की आवश्यकता है। स्वतंत्रता के इकहत्तर साल बाद भारत एक महामारी से बाहर निकलने के लिए अपना खुद का मार्ग बना सकता है; एक ऐसा मार्ग, कि भविष्य में जन और प्रकृति दोनों ही सुरक्षित रह सकें।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित श्लोका नाथ और आरन पटेल के लेख पर आधारित। 27 जनवरी, 2021

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