भारत के हरित आवरण की बहाली के प्रयास
Date:28-10-21 To Download Click Here.
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और राष्ट्रीय नीतियों के बावजूद, वैश्विक वन क्षेत्र में कमी आती जा रही है। भारत में भी बड़े वन क्षेत्र की हानि हुई है। यही कारण है कि आज वृक्षारोपण सहित वनबहाली गतिविधियों का तेजी से प्रसार किया जा रहा है। इसी के चलते 2021-2030 के दशक को “यू एन डिकेड ऑन इम्प्रूविंग एनविरोमेन्टल कंडीशन्स एण्ड एन्हासिंग हयूमन कम्यूनिटीस’’ घोषित किया गया है।
प्रमुख चुनौतियां और रणनीति –
- भारत की मृदा जलवायु और स्थलाकृति की स्थितियां 10 जैव-भौगोलिक क्षेत्रों और चार जैव-विविधता वाले हॉटस्पॉट में फैली हुई है। ये दुनिया के शत 8% वनस्पतियों और जीवों को आश्रय देती हैं। परंतु बढ़ती जनसंख्या से वनों पर बढ़ती निर्भरता ने भारत में 41% वनों का क्षरण किया है।
इसकी क्षतिपूर्ति हेतु भारत ने 2015 में बॉन चैलेंज में यह संकल्प लिया है कि 2030 तक 26 एमएचए (मिलियन हेक्टेयर एरिया) वन की बहाली की जाएगी। 2011 तक भारत ने 98 एमएचए की पूर्ति कर ली थी।
- भारत में लगभग 5.03% वन संरक्षण क्षेत्र प्रबंधन के अधीन है, जिसे विशिष्ट रणनीतियों की आवश्यकता है। इस हेतु स्थानीय कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है। इसलिए स्थानीय गड़बड़ियों, और वन आश्रित समुदायों एवं पारिस्थितिक पहलुओं आदि पर विधिवत विचार करते हुए ही हस्तक्षेप किया जाना उपयुक्त होगा।
- भारत की बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रह रही है। इनमें से लगभग 27.5 करोड़ लोग स्थानीय आदिवासी हैं, जो आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। वनों के एक बड़े भाग को चराई एवं अन्य उपयोगों के लिए स्थानीय समुदायों ने अधिकार में ले रखा है।
संयुक्त वन प्रबंधन समितियों का गठन करके वनों के संरक्षण और विकास में स्थानीय लोगों को शामिल करने की पहल की गई है। हाल ही में विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ में वनों से जुड़ी इन समस्याओं एवं उनके समाधान का बखूबी चित्रण किया गया है।
- वन बहाली के लिए पर्याप्त निधि भी एक चिंता का विषय है। इसमें कॉरपोरेट क्षेत्र का योगदान मात्र 2% रहा है। इस क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के साथ विभिन्न विभागों के भूमि आधारित कार्यक्रम का संचालन किया जाना चाहिए।
- पूरे कार्यक्रम के लिए गैर-सरकारी संस्थाओं की भागीदारी सहित हितधारकों की सक्रिय भागीदारी, नीतिगत हस्तक्षेपों और आर्थिक योगदान के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। इस प्रकार के समावेशी दृष्टिकोण से ही बाकी के लक्ष्य की पूर्ति की जा सकेगी।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित मोहन चंद्र परागन के लेख पर आधारित। 5 अक्टूबर, 2021