भारत में आत्महत्या और उसकी रोकथाम से जुड़े कुछ तथ्य
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- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में आत्महत्या रोकथाम रणनीति प्रकाशित की है।
- यदि वैश्विक रूप से देखें, तो 15-29 वर्ष के लोगों की मृत्यु का दूसरा बड़ा कारण आत्महत्या होता है। 15-19 आयु वर्ग की युवतियों की मृत्यु में भी यही दूसरा बड़ा कारण है।
- भारत में प्रतिवर्ष एक लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं।
- पिछले तीन वर्षों में आत्महत्या की दर प्रति लाख पर 10.2 से बढकर 11.3 हो गई है।
- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड के अनुसार महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक राज्यों में 2018-2020 तक 8% से 11% यानि सबसे ज्यादा संख्या में आत्महत्याएं हुई हैं।
कारण –
- आत्महत्या के सबसे बड़े कारणों में पारिवारिक समस्याएं, बीमारी, दिवालिया होना, प्रेम-प्रसंग, दाम्पत्य जीवन के झगड़े, मादक पदार्थों का सेवन और उन पर निर्भरता का होना है।
- लगभग 10% मामलों में कारण का पता नहीं होता है।
रणनीति –
- मंत्रालय की रणनीति, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत दक्षिण और पूर्वी एशियाई क्षेत्र में आत्महत्या की रोकथाम के लिए बनाई गई रणनीति से ही प्रेरित है।
- इसका पहला कदम यही है कि हम इस समस्या के अस्तित्व को स्वीकारें।
- इस रणनीति में साक्ष्य-आधारित प्रथाओं के साथ समयबद्ध कार्य योजना को अपनाना है, जिसमें अनेक क्षेत्रों के सहयोग की आवश्यकता होगी।
- अगले तीन वर्षों में प्रभावशाली निगरानी तंत्र की स्थापना की प्रतिबद्धता है।
- अलगे पांच वर्षों में सभी जिलों में मनोचिकित्सा विभाग की स्थापना करना है।
- अगले आठ वर्षों में शैक्षणिक संस्थानों के पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य के अध्याय जोड़ना है।
- कीटनाशकों और शराब या नशीले पदार्थों की उपलब्धता को कठिन बनाना भी रणनीति का लक्ष्य है।
- सरकार का लक्ष्य है कि इस रणनीति के माध्यम से 2030 तक आत्महत्या से होने वाली मौतों में 10% की कमी कर सके।
भारत में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या से स्थिति विकट हो चुकी है, और लक्षित कार्यक्रमों के साथ इससे निपटने की उम्मीद की जा सकती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 नवंबर 2022
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