बैंकिंग में कॉर्पोरेट के प्रवेश पर कुछ सकारात्मक बिंदु

Afeias
23 Feb 2021
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Date:23-02-21

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उत्पादन में पूंजी एक महत्वपूर्ण तत्व है। भारत के व्यावसायिक क्षेत्र को पूंजी का लगभग 60%, बैंक-क्रेडिट से प्राप्त होता है। मतलब कि भारत में पूंजी का सबसे बड़ा एकल स्रोत बैंक-क्रेडिट है। लेकिन इसकी मात्रा अपर्याप्त है। 2018 में जीडीपी के अनुपात में बैंकों द्वारा निजी क्षेत्र को दिया जाने वाला घरेलू ऋण सिर्फ 50% था, जबकि चीन में यह 158% , दक्षिण कोरिया में 141% , थाईलैण्ड में 112% और दक्षिण अफ्रीका में 66% था।

यह कहना गलत नहीं है कि 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बैंक- ऋण को बढाए जाने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से आर बी आई की इंटरनल वर्किंग कमेटी ने नवम्बर 2020 की रिपोर्ट में कॉर्पोरेट क्षेत्र को बैंकिंग में प्रवेश देने की अनुशंसा की है। कुछ अर्थों में यह बहुत ठीक भी है।

  • आमतौर पर इस बारे में सहमति रहती है कि करदाता के धन का उपयोग, गैर निष्पादित परिसंपत्तियों की पूंजी की अपर्याप्तता को ठीक करने हेतु पुनर्पूंजीकरण तक किया जा सकता है। परंतु सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकिंग का विस्तार करने के लिए इसका उपयोग करने से बचा जाना चाहिए।

निजी क्षेत्र में, हमारे बैंकों को पूंजी के लिए उत्तरोत्तर विदेशी स्रोतों पर भरोसा करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप दो सबसे बड़े घरेलू निजी बैंकों का बहुसंख्यक स्वामित्व विदेशी है।

  • निवेश योग्य पूंजी वाले कॉर्पोरेट घराने, बैंकिंग में निवेश का सबसे बड़ा घरेलू स्रोत बन सकते हैं। उन्हें अनुमति देने के किसी भी जोखिम का मूल्यांकन, उनसे प्राप्त होने वाले लाभों के संदर्भ में किया जाना चाहिए।
  • वित्तीय बाजारों की जटिलता और फिनटेक के विस्फोटक पदार्पण के बाद गैर बैंकिंग वित्त कंपनियां या एन बी एफ सी बाहर हो जाएंगी। इससे विकास और क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अभी भी जो एन बी एफ सी काम कर रही हैं, वे सार्वजनिक जमा भी स्वीकार कर रही हैं। इनका प्रदर्शन भी ठीक रहा है। अतः कॉर्पोरेट बैंकों से परहेज क्यों ?
  • नए फिनटेक बिजनेस मॉडल में टेलीकम्यूनिकेशन, डिजीटल कंज्यूमर सर्विसेज और फाइनेंस जैसे क्षेत्र शामिल हैं। सिंगापुर ने हाल ही में ऐसी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस प्रदान किया है। भारत में भी यह संभव है।

इस मामलें में आलोचकों ने दो बिंदुओं पर तर्क दिया है –

  1. गैर वित्तीय निगमों को बैंकिंग में प्रवेश देने से आर्थिक शक्ति का संकेंद्रण होगा।

इस तर्क का आधार सही इसलिए नहीं लगता कि बैंकिंग से कॉर्पोरेट घरानों को बहिष्कृत रखकर इसे रोका नहीं जा सकता है। अभी भी देश में रिलायंस और टाटा समूह के पास बहुत अधिक संपत्ति है।

  1. आलोचकों का मानना है कि ऐसे बैंक अपनी कंपनियों को ही गैर-कानूनी तरीके से उधार देंगे। यह तर्क बेबुनियाद नहीं है। इसके लिए आरबीआई के पास पर्याप्त शक्तियां हैं। एन पी ए के सफाए के लिए करदाताओं का धन लगाने के बजाय विनियमन का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

कार्पोरेट के बैंकिंग में प्रवेश से मिलने वाले लाभों में क्रेडिट अभाव की बड़ी समस्या को हल किया जा सकता है। विकास की अनिवार्यताए नई प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रस्वावित ऋण उपलब्धता और अवसरों के दोहन को बढ़ाने के उद्देश्य से नई सोच की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पनगढ़िया और राजीव मंत्री के लेख पर आधारित। 6 फरवरी, 2021