नौकरशाही सुधारों के लिए कॉर्पोरेट प्रबंधक की नियुक्ति क्यों ?

Afeias
12 Aug 2021
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Date:12-08-21

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हाल ही में प्रशासनिक सुधारों के लिए तीन सदस्यीय कार्यदल बनाया गया है। इस मिशन को ‘कर्मयोगी’ नाम दिया गया है। विडंबना यह है कि प्रमुख नौकरशाही सुधारों के लिए इन्फोसिस जैसी कॉर्पोरेट कंपनी के प्रबंध निदेशक को नियुक्त किया गया है।

दरअसल, कॉर्पोरेट जगत और सार्वजनिक प्रशासन के कामकाज में बहुत भिन्नता होती है। एक कंपनी का संपूर्ण पदानुक्रम अपनी वित्तीय रेखा को मजबूत करने की दिशा में निर्देशित होता है। ऊपर से नीचे तक हर कॉर्पोरेट प्रबंधक जानता है कि लाभ देना ही अंतिम लक्ष्य है।

जबकि दूसरी ओर, लाभ कमाना सरकार का काम नहीं है। किसी भी निजी क्षेत्र की कंपनी की तुलना में सरकार की जिम्मेदारियों का दायरा बहुत अधिक होता है। इस अंतर को निम्न तरीके से भी समझा जा सकता है –

जमीनी वास्तविकता और राजनीतिक संवेदनशीलता –

  • एक कॉर्पोरेट मैनेजर की तुलना में सिविल सेवक के पास बहुत व्यापक कैनवास होता है। वह एक राजनीतिक व्यवस्था के तहत एक साथ कई लक्ष्यों का पीछा करता है, जिसकी अपनी मजबूरियां और प्राथमिकताएं होती हैं। इस यात्रा में लक्ष्य भी बदल सकते हैं। जबकि एक कॉर्पोरेट अधिकारी का लक्ष्य केवल और केवल कंपनी को लाभ में लाना होता है।
  • सिविल सेवक अनिवार्य रूप से राजनीतिक-प्रशासक होते हैं। प्रशिक्षण, प्रदर्शन और अनुभव से, प्रत्येक सिविल सेवक जमीनी वास्तविकता, प्रक्रियात्मक पारिस्थितिकी तंत्र और हर निर्णय की राजनीतिक संवेदनशीलता को समझता है। जबकि कॉर्पोरेट कंपनी का क्षेत्र सीमित व देश की राजनीति से दूर होता है।
  • सिविल सेवक, केंद्र सरकार को राज्यों और विविध मंत्रालयों की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक विशेषतओं से अवगत कराते हैं। यह ज्ञान उस ज्ञान से कहीं अधिक मूल्यवान है, जो लोक कल्याण के लिए योजनाओं के सफल डिजाइन और कार्यान्वयन से संबंधित एक निजी क्षेत्र का विशेषज्ञ रखता है।

सच्चाई यह है कि अगर लक्ष्य स्पष्ट और अच्छी तरह से पारिभाषित है, तो कर्मियों के बदलाव के बिना भी शासन में सुधार हो सकता है। प्रशासन के उद्देश्य की स्पष्टता, राजनीतिक समर्थन का विश्वास, व्यावसायिकता की वापसी होनी चाहिए। आयोगों, समितियों और कार्यदलों के टुकडा-टुकडा सुधारों के दम पर प्रशासनिक क्षेत्र में व्यापक परिवर्तनों की आस नहीं की जा सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित के एम चंद्रशेखर और के जयकुमार के लेख पर आधारित। 30 जुलाई , 2021

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