बढ़ती मुद्रास्फीति का घरेलू वित्तीय बचत पर प्रभाव

Afeias
02 Jun 2022
A+ A-

To Download Click Here.

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने रेपोरेट में वृद्धि की है। इससे दो धारणाएं बनती हैं। एक तो यह कि वित्तीय वर्ष की तिमाहियों में गिरावट का अनुमान लगाने वाले आरबीआई के दृष्टिकोण को संशोधित किया जाएगा। दूसरे, रेपोरेट में और बढ़ोत्तरी की संभावना है। ये दोनों ही धारणाएं अर्थव्यवस्था के भागीदारों को समायोजन या एडजस्टमेन्टस के लिए बढ़ावा देंगी। इसके आकलन का एक तरीका यह देखना है कि बचत और निवेश चैनलों के माध्यम से समायोजन किस तरह किया जा सकेगा।

कुछ बिंदु –

  • ब्याज दरों के बढ़ने से घरेलू बचत और निवेश, दोनों ही बहुत अधिक प्रभावित होंगे। वर्तमान में, घरेलू बचत का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत घर हैं। वे अब बैंक ऋण के फैलाव के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि आजकल पर्सनल लोन औद्योगिक लेंडिंग के लगभग बराबर पहुँच गया है।
  • मुद्रास्फीति के बढ़ने पर भारतीय घरेलू बचत में परंपरागत रूप से दो प्रकार का चलन देखने को मिलता है। (1) सोने के रूप में बचत की ओर झुकाव बढ़ता है। यह देखा गया है कि एक दशक पहले मुद्रास्फीति के अधिक होने पर यह बचत का 1.6% भाग था, जो मुद्रास्फीति के गिरते ही 1.1% रह गया। (2) उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत, कुल बचत का 32% थी, जो मुद्रास्फीति घटते ही 40% हो गई।
  • अक्टूबर 2019 से, आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम की बेंचमार्किंग लैंडिंग दरों को रेपो रेट जैसे बाहरी उपायों पर छोड़ दिया है।
  • यह प्रणाली अब एसएमएसई या लघु एवं मध्यम उद्यम, व्यवसाय और होम लोन पर तेजी से प्रभावी हो रही है। इस प्रक्रिया में बैंक जमा दरें भी तेजी से समायोजित हो जाती हैं। अतः इस बार घरेलू शुद्ध वित्तीय बचत भी तेजी से समायोजित हो सकती है। कुल घरेलू बचत में उसका अनुपात तेजी से गिरने की संभावना है।
  • फिलहाल, बचत के लिए लोग इक्विटी शेयरों में निवेश करना भी पसंद कर रहे हैं। इस क्षेत्र की वृद्धि, शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव से प्रभावित होती है। मुद्रास्फीति के आसपास बढ़ी अनिश्चितता से विभिन्न फर्मों के निवेश पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • इसके अलावा भी दो विकल्प हैं, जो व्यक्तिगत बचतकर्ता का ध्यान आकर्षित करेंगे-बैंक सावधि जमा और बीमा पॉलिसी। ये ऐसे निवेश हैं, जिनमें ब्याज दरों के कम होने पर भी जोखिम से बचने के लिए निवेश होता रहता है।

वर्तमान में बढ़ती उधार दरों के चलते बैंकों को नई चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है, और उन्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 मई, 2022