आर्थिक असमानता और भारत
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विश्व प्रसिद्ध अर्थशास़्त्री थॉमस पिकेटी का मानना है कि आर्थिक असमानता एक समस्या है, और अमीरों पर उच्च कर लगाना ही इसका समाधान है। उन्होंने असमानता को वैश्विक समस्या के रूप में पेश करने के लिए दुनियाभर के समाजविज्ञानीयों को शामिल किया है।
भारत के संदर्श में –
पिकेटी की यह अवधारणा पश्चिमी वामपंथियों के बीच चर्चा का गंभीर मुद्दा हो सकती है, लेकिन भारत के नीति निर्माताओं के लिए यह कोई चिंता का बड़ा विषय नहीं होना चाहिए। क्यों ?
- हमारी सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती निकट भविष्य में करोड़ों लोगों के लिए धारणीय विकास और अवसर पैदा करना है।
- भारत में 1991 के बाद से ही आर्थिक विकास, मुक्त बाजार और आर्थिक वैश्वीकरण का युग शुरू हुआ है। पिकेटी के अनुसार यह बढ़ती असमानता के युग की शुरूआत थी, जबकि भारत के लिए यह ऐतिहासिक काल था।
- पिछले दो दशकों में लगभग 40 करोड़ से ज्यादा भारतीयों ने खुद को गरीबी से बाहर निकाला है। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिसकी बराबरी चीन से की जा सकती है।
इसकी तुलना अगर 1947 के बाद के तीन दशकों से करें, जब गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई थी। असमानता तब कम थी, क्योंकि लोग समान रूप से गरीब थे। इसकी तुलना ब्रिटिश राज से करें, जिसके दौरान जनता गरीबी और अकाल में डूब गई थी। अतः यह कहना सरासर गलत है कि आज के भारतीय औपनिवेशिक और समाजवादी काल की तुलना में बदतर हैं।
- वर्तमान भारत के सभी किसान इसलिए गरीब नहीं कहे जा सकते, क्योंकि वे आयकर के दायरे से बाहर हैं।
- रियल एस्टेट और सोने में निवेश की गई संपत्ति की गणना करना मुश्किल है।
- इसके अलावा भारत में आय और संपत्ति को कम करके दिखाने के अपने लाभ हैं। गरीब की श्रेणी में आपको कई तरह की सब्सिडी और प्रोत्साहन मिल जाते हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि आर्थिक सुधारों के बाद असमानता नहीं बढ़ी है। बेंगलुरू में काम करने वाले एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की उत्पादकता और आय उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण कृषि मजदूर की तुलना में कई गुना अधिक हुई है। लेकिन आर्थिक असमानता अपने आप में समस्या नहीं कही जा सकती है। समस्या इसके प्रभावों में है। अनुभवजन्य साक्ष्य दर्शाते हैं कि उच्च समानता कुछ मामलों में उच्च वृद्धि का कारण बन सकती है, और अन्य में इसके विपरीत भी हो सकता है। भारत के संदर्भ में हमें चिंता यह करनी चाहिए कि क्या गरीबों की कीमत पर अमीर और अधिक अमीर हो रहे हैं?
कुछ बिंदु –
- इस प्रश्न के उत्तर में कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन देश में वेतनभोगी और अपना काम करने वाले लोगों की गतिविधियों से भी बहुत कुछ समझा जा सकता है। (1) देश में बड़े पैमाने पर कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं। (2) लोग बेहतर अवसर की तलाश में कम आर्थिक असमानता वाले क्षेत्रों से उच्च असमानता वाले क्षेत्रों में जा रहे हैं, क्योंकि वे अपना विकास चाहते हैं। (3) देश में नीतिगत विकास हो रहा है, जो राष्ट्रीय राजमार्गों, रेलगाड़ियों, हवाई अड्डों और जीएसटी के माध्यम से बनने वाले एक राष्ट्रीय बाजार में देखा जा सकता है। इन सबने जनता की आय बढ़ाने और असमानता को कम करने के लिए चलाई जाने वाली किसी भी पुनर्वितरण योजना की तुलना में बहुत अधिक काम किया है।
आर्थिक असमानता के नकारात्मक प्रभावों से कैसे निपटा जा सकता है?
- बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जानी चाहिए।
- लोगों को कौशलयुक्त बनाकर अवसर प्राप्त करने के योग्य बनाया जाना चाहिए।
- बाजार की शक्ति केंद्रित न हो।
- सार्वजनिक नीति ऐसी हो कि उसकी योजनाओं की रकम भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाए।
- इन सबके लिए राजकोषीय नीति की जगह प्रतिस्पर्धा कानून, क्षेत्रीय सुधार और पारदर्शिता की आवश्यकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित पवन पई के लेख पर आधारित। 7 अप्रैल, 2024