हमारा सर्वोत्तम निवेश
Date:29-08-17
To Download Click Here.
हाल ही में सरकार ने शिक्षा के मौलिक अधिकार की समालोचना की है। इस संदर्भ में सरकार ने कक्षा 1 से 8 तक किसी विद्यार्थी को फेल न करने की नीति को एक तरह से बदल डाला है। अब राज्य सरकारें इन कक्षाओं में परीक्षा का आयोजन कर विद्यार्थी को अनुत्तीर्ण करने के अलावा निष्कासित भी कर सकती हैं। सरकार के इस कदम का स्वागत किया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रारम्भिक वर्षों में एक उपलब्धि की चाह में किए जाने वाले अध्ययन से बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव और दबाव दोनों ही रहता है। साथ ही शिक्षक भी अच्छे परिणाम लाने के दबाव में कुछ बेहतर प्रयास करते हैं।
अगर शिक्षा-विधान संबंधी दृष्टिकोण से देखें, तो कक्षा में क्षमता से अधिक विद्यार्थियों की संख्या एवं रटकर परीक्षा पास करने वाली पद्धति से सरकार की अपेक्षा के अनुरुप कोई परिणाम नहीं मिलने वाला है।
- वार्षिक शिक्षा सर्वेक्षण की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 6 से 11 वर्ष के 95 प्रतितशत ग्रामीण बच्चे स्कूल जाते हैं, परन्तु उनका लिखने-पढ़ने का स्तर बहुत खराब है। कक्षा तीन का बच्चा कक्षा 1 तक की ही पुस्तक पढ़ने में सक्षम है। यह ऐसा तथ्य है, जिसमें 2011 से अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है। पढ़ाई के इस स्तर को देखते हुए ऐसे सभी बच्चे आगे की कक्षाओं में जा ही नहीं सकते। साथ ही हमारे स्कूलों में ऐसे संसाधन भी नहीं हैं, जो इन औसत से कम विद्यार्थियों को परीक्षा पास करने योग्य बना सकें।
- हमारे देश में बच्चों के मस्तिष्क का औसत विकास न हो पाने का बहुत बड़ा कारण गरीबी है। उन्हें शरीर एवं मस्तिष्क के विकास के लिए पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता।
- आर्थिक एवं सामाजिक विषमताओं के चलते उन्हें माता-पिता का वह दिशा-निर्देशन नहीं मिल पाता, जिनकी उन्हें आवश्यकता होती है।
- हमारे देश के अधिकांश बच्चों में कुपोषण के कारण स्कूल में दाखिल होने से पहले ही शरीर एवं मस्तिष्क की हानि हो चुकी होती है।पूरे विश्व में बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है। यहाँ के रोजगार सबसे ज्यादा सेवा क्षेत्र में हैं। समय के साथ ये रोजगार डिजीटल तकनीक के क्षेत्र में जा रहे हैं। स्कूली बच्चों के कमजोर प्रदर्शन के साथ हम बेरोजगारी की स्थिति को कैसे संभाल पाएंगे, यह सोचनीय है।
- दूसरी ओर, हमारे मस्तिष्क के साथ एक बहुत ही सकारात्मक पक्ष भी जुड़ा है। इसको समय के साथ पर्याप्त भावनात्मक एवं खाद्य संबंधी पोषण मिलने पर यह विकसित हो सकता है। इसके अलावा खुले में शौच की प्रथा को समाप्त करके अस्वच्छता से होने वाली बीमारियों से इसे बचाकर मस्तिष्क का उचित विकास जारी रखा जा सकता है।
- वंचित बच्चों के अभिभावकों को उचित प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। उन्हें बताना होगा कि स्कूल से पहले के वर्षों में कैसे खेल आदि के माध्यम से बच्चों का उचित विकास किया जा सकता है।
कुछ वर्ष पहले विश्व बैंक ने छोटे बच्चों के विकास को ‘किसी देश के सर्वोत्तम निवेश’ की संज्ञा दी थी। इस निवेश के महत्व को समझते हुए भारत ने 1975 में एकीकृत बाल विकास योजना की शुरूआत की थी। समय के साथ छोटे बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए वातावरण प्रदान करने के अपने मूल उद्देश्य से भटककर यह योजना सुविधाएं देने तक ही सीमित रह गई है।
अभी भी समय है, जब हम हर बच्चे को ऐसा अवसर प्रदान कर सकते हैं, जिसमें वह फलते-फूलते हुए एक सक्षम नागरिक बने। वह अपने स्वप्न साकार करने के साथ ही राष्ट्र के विकास में भी सहयोगी बने।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित विक्रम पटेल के लेख पर आधारित।