महिलाओं की सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति में अंतर की विडंबना

Afeias
28 Aug 2017
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Date:28-08-17

 

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इस वर्ष नागालैण्ड की महिलाओं द्वारा स्थानीय प्रशासन में 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग ने एक बार फिर महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले पर सबका ध्यान आकर्षित किया है।दूसरी ओर, हरियाण को देखें, तो उसने पंचायत के चुनावों की उम्मीदवारी में सामान्य, अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए उनकी योग्यता में काफी छूट दी है।

  • हरियाणा चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि स्थानीय प्रशासन में पिछड़े वर्ग की महिलाओं की तुलना में अनुसूचित जाति की महिलाएं आगे हैं, जबकि सरपंच के स्तर पर पिछड़ी जाति की महिलाएं थोड़ा आगे हैं।
  • हरियाणा में ग्राम एवं जिला स्तर पर अनुसूचित जाति की महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। पंचायत के पदों में कुल आरक्षण का अधिक प्रतिशत पुरुषों को ही दिया गया था। शोध से पता चलता है कि महिलाओं के आगे निकलने का कारण योग्य पुरुषों की कमी रही है, क्योंकि3 प्रतिशत महिला पंच बिना किसी विरोध के ही चुन ली गईं हैं।
  • हरियाणा विधान सभा की 90 सीटों में 13 पर महिला प्रतिनिधि हैं। सभी राज्यों से यह सर्वाधिक है।
  • दूसरी ओर नागालैण्ड विधानसभा में एक भी महिला विधायक नहीं है।
  • अगर लिंगानुपात और स्त्री शिक्षा की बात करें, तो नागालैण्ड बाजी मार ले जाता है। हरियाणा में प्रति हजार पुरुष पर 879 महिलाएं हैं। लिंगानुपात की दृष्टि से यह देश में दूसरा सबसे कम अनुपात वाला राज्य है।
  • यह वाकई बहुत बेमेल लगने वाली बात है कि हरियाणा जैसे राज्य में निम्नतम सामाजिक स्थिति में रहने वाली महिलाओं की राजनैतिक स्थिति एक प्रकार से सर्वोत्तम है।

वहीं नागालैण्ड में अनुपात और शिक्षा की दृष्टि से अच्छी स्थिति रखने वाली महिलाएं राजनैतिक प्रतिनिधित्व से वंचित हैं।

हिन्दू में प्रकाशित राधिका कुमार के लेख पर आधारित।

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