सूचना के अधिकार पर सवाल
Date: 03-06-16
सूचना का अधिकार निःसंदेह नागरिकों का एक सशक्त अधिकार है।
हाल ही में राज्यसभा के कुछ सदस्यों ने इस कानून में सुधारों की मांग की है।
क्या और क्यों है ये सुधार की मांगे :
- राज्यसभा सदस्यों का कहना है कि इस अधिकार का दुरुपयोग लोकसेवकों या राजनेताओं को ब्लैकमेल करने के लिए बहुत ज्यादा किया जाने लगा है।
- सूचना के अधिकार के डर से आज सरकारी कर्मचारी खुलकर निर्णय नहीं ले पाते हैं।
- सूचना के अधिकार के चलते बहुत से बेकार और परेशान करने वाले आवेदन भारी मात्रा में आते हैं, जिनके जवाब देने में सरकार का बहुत समय बर्बाद होता है।
- यह भी कहना है कि देश का कोई भी पनवाड़ी या चायवाला भी अपनी सीमा जाने बिना देश के संवेदनात्मक और गोपनीय मामलों से जुड़े आवेदन भेज देता है। इस अधिकार से सरकार की गोपनीयता भंग होने का खतरा है।
सच्चाई क्या है?
- सूचना के अधिकार के उपयोग या दुरुपयोग को लेकर आरटीआई एसेसमेन्ट एण्ड एडवोकेसी ग्रुप ने नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टू इंर्फोंमेशन के साथ मिलकर एक सर्वे किया। इसमें 20,000 आरटीआई आवेदनों में से 5,000 आवेदनों को देखा गया। इन आवेदनों में केवल एक प्रतिशत ही ऐसे बेकार के आवेदन थे, जिनको कानून के दुरुपयोग या समय की बर्बादी के अंतर्गत रखा जा सकता है। ज्यादातर आवेदनों में सरकार के लिए गए निर्णयों या जन अधिकारियों के कार्य करने से जुड़े नियमों आदि के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
- सन् 2009 में सरकार द्वारा कराए गए सर्वे में भी ऐसी कोई बात सामने नहीं आई कि सूचना के अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है।
- सूचना के अधिकार से किसी विभाग में हो रही गड़बड़ी का खुलासा करने में मदद मिलती है।
- जहाँ तक सरकारी गोपनीयता का सवाल है, सूचना के अधिकार के भाग 8 में इसकी सीमाएं और प्रतिबंध वर्णित किए गए हैं। इसमें देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों, विदेशों से देश के संबंध या ऐसी व्यक्तिगत सूचना, जिनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है, की सूचना देने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
‘दि इंडियन एक्सप्रेस’’ से साभार
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