सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोधक क्षमता (एंटीमाइक्रोबायल रैसिस्टैन्स)
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स्वच्छ, सुरक्षित और पर्याप्त जल जन-स्वास्थ्य की आधारशिला होता है। जहाँ जल की स्वच्छता और दूसरी तरह की साफ सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, वहाँ हैजा और टायफाइड जैसी बीमारियाँ जन्म लेती हैं। जहाँ जल संबंधी अनियमितताएं हैं, वहाँ रसायनों, रोगजनक कीटाणुओं और मल-मूत्र से जल प्रदूषित होता जा रहा है। इस प्रकार कुल मिलाकर स्वच्छता की कमी से मानव संसार के लिए जो एक भयंकर चुनौती आ खड़ी हुई है, वह है- एंटीमाइक्रोबायल रैसिस्टैन्स (AMR) या सूक्ष्मजीवीरोधी प्रतिरोधक क्षमता।
सामान्य भाषा में कहें तो ये ऐसे सूक्ष्म जीवाणु हैं, जिन पर किसी प्रकार की एंटीबायोटिक दवा असर नहीं करती, क्योंकि ये संक्रमित जीवाणुओं में परिवर्तन करते रहते हैं। स्वच्छता की कमी तो बीमारियों का मुख्य कारण है ही, परंतु एंटीबायोटिक का अनियमित और अति उपयोग एएमआर का एक मुख्य कारण है। दूसरे, जब एंटीबायोटिक को गैर-इंसानी या इंसान के अलावा अन्य प्राणियों को दिया जाता है, तब भी एएमआर का खतरा बढ़ जाता है। इससे जिस तरह से यह बैक्टीरिया में परिवर्तन होता है, उसे ही सुपरबग नाम कहा जाता है। त्वचा के जख्मों और डायरिया जैसी सुपरबग के कारण होने वाली बीमारियों में उपचार असंभव हो जाता है। इससे शल्य-चिकित्सा में भी खतरा बढ़ जाता है। पूरे विश्व में प्रतिवर्ष एएमआर से मरने वालों की संख्या लगभग सात लाख है। अगर आगे भी यही स्थितियां रहीं, तो कैंसर की अपेक्षा सुपरबग से मरने वालों की संख्या ज़्यादा होगी।
इन सबमें पानी, स्वच्छता और अच्छे स्वास्थ्य की क्या भूमिका है ?
- साफ-सफाई की कमी और गंदे जल से बैक्टीरियाजनित रोग अधिक होते हैं। इनके अधिक होने से लोग एंटीबायोटिक अधिक खाते हैं। हालांकि दक्षिण-पूर्व एशिया में उन्नत जल स्त्रोतों की कमी नहीं है, लेकिन इनका प्रबंधन ठीक नहीं है। यही कारण है कि कहीं पानी की अधिकता है और कहीं बिल्कुल सूखा। ऐसे में जब लोगों को प्रदूषित जल के कारण बीमारियां होती हैं, तो वे अपने आप ही एंटीबायोटिक लेना शुरू कर देते हैं।
- हमारी स्वास्थ्य-सेवाएं निम्नस्तरीय हैं। ऐसा पाया गया है कि कुछ सुपरबग तो इन्हीं स्वास्थ्य संस्थानों की देन हैं।
- तीसरे, गंदा जल भी अपने आप में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया लिए बहता है और जगह-जगह इन्हें फैलाता है। घरों, अस्पतालों, दवाई-निर्माण उद्योगों से निकलने वाला गंदा जल जहाँ प्राकृतिक जल-स्त्रोतों में मिलता है, वहाँ से यह पीने के पानी के साथ-साथ अन्न उत्पन्न करने वाली भूमि को भी संक्रमित कर देता है।
- अगर सभी देश चाहें, तो मिलकर इस समस्या का समाधान निकाल सकते है। इसके लिए हमें वॉश Wash(Water, Sanitization and Hygiene),के सिद्धांतों के केंद्र में जाना होगा। इस कार्यक्रम को देश के सभी क्षेत्रों का अहम् हिस्सा बनाकर ए एम आर को निष्क्रिय किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में खर्च कम है, लेकिन फायदे बहुत ज़्यादा हैं।
- इसके लिए सबसे पहले तो सरकार को सभी के लिए स्वच्छ जल और स्वच्छता को प्राथमिकता देनी होगी। ग्रामों और शहरों में ऐसे क्षेत्रों और समूहों की पहचान करनी होगी, जहाँ साफ-सफाई की सबसे ज़्यादा जरूरत है। स्थानीय जलापूर्ति केंद्रों में जल-उपचार संयंत्र लगाने होंगे। ऐसे शौचालयों का निर्माण करना होगा, जिनका संचालन स्थानीय लोग सुचारू रूप से कर सकें। खुले में शौच की प्रथा को सौ फीसदी बंद करना होगा।
- सभी स्वास्थ्य केंद्रों में वॉश के अंतर्गत दी जाने वाली सुविधाएं एवं प्रशिक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए। इससे जुड़ी हर सुविधा के लिए पर्याप्त एवं स्वच्छ जल की आवश्यकता होगी। जगह-जगह हाथ धोने के स्थान बनाए जाएं। स्वास्थ्य कर्मियों को वॉश कार्यक्रम से भली-भांति परिचित करवाया जाए, जिससे संक्रमण से सुरक्षा और उसके नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘क्लीन केयर इज़ सेफर केयर‘ कार्यक्रम को शामिल किया जाए।
- गंदे जल के उचित उपचार और प्रबंधन को अधिक विकसित किया जाना चाहिए। इसके लिए जल-प्रबंधन और उपचार में निवेश की आवश्यकता होगी। इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप वाला सिद्धांत कारगर हो सकता है। अस्पताल एवं दवा-उद्योगों को अपने परिसर में ही जल-उपचार केंद्र लगाने को प्रोत्साहित किया जाए, जिससे सुपरबग को वहीं की वहीं निष्क्रिय किया जा सके। मत्स्य पालन एवं कृषि में काम आने वाले गंदे जल पर खास निगरानी रखे जाने की आवश्कता है। इस पर तो मनुष्य का बहुत कुछ निर्भर करता है। अतः इनमें प्रयोग में लाया जाने वाला जल जीवाणु एवं अवशेषों से मुक्त होना चाहिए।
- इन सब उपायों पर नियंत्रण और निगरानी रखे जाने वाला एक दल बनाना होगा, जो सच्चाई और ईमानदारी से समस्या को समझकर उस पर कार्यवाही करने की क्षमता रखता हो।
दरअसल, सुपरबग एक ऐसा बैक्टीरिया है, जो कब, कहाँ, किस रूप में हमारे सामने आ जाएगा, हमें भी नहीं पता है। इसलिए कहीं भी इसकी उपस्थिति को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, और उसकी पूर्ण जानकारी के लिए कमर कस लेनी चाहिए।
ए एम आर को रिवर्स करना और हमारी एंटीबायोटिक की क्षमता को बनाए रखना एक जटिल काम है। इसके लिए इस बात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि एंटीबायोटिक कैसे बनाई जा रही हैं, कैसे लिखी जा रही हैं और कैसे खाई जा रही हैं। दूसरे, अलग-अलग क्षेत्र के लोग कैसे एकजुट होकर एएमआर संबंधी खतरों को दूर कर सकते हैं, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स आॅफ इंडिया‘ में प्रकाशित पूनम खेत्रपाल सिंह के लेख पर आधारित।