सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए
Date:02-06-21 To Download Click Here.
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की कामकाजी भारतीयों की स्थिति से जुड़ी 2021 की रिपोर्ट बताती है कि महामारी ने आम भारतीयों की आर्थिक स्थिति पर कैसा कहर बरपाया है। कैसे संगठित क्षेत्र में काम करने वाले अनेक लोग 2019 से लेकर 2020 के अंत तक असंगठित क्षेत्र में आने को मजबूर हुए हैं। 20% अति निर्धन जनता अपनी सारी जमा पूंजी खर्च करके असहाय हो चुकी है। 375 रु. प्रतिदिन की राष्ट्रीय न्यूनतम आय वाली 23 करोड़ जनता, इससे भी कम पर समझौता करने को मजबूर हो गई है। इन स्थितियों में सरकार द्वारा चलाए जाने वाली समाज कल्याण योजनाओं की वास्तविकता को समझा जाना चाहिए।
सरकार की ‘खाद्य सुरक्षा योजना’ में ग्रामीण क्षेत्र की 75% और शहरी क्षेत्र की 50% जनसंख्या आ जाती है। इस योजना में छूट जाने पर केंद्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ का अतिरिक्त लाभ दिया जाता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत ही ‘अंत्योदय अन्न योजना’ का भी प्रावधान है। इसमें बहुत अधिक निर्धन जनता को शामिल करके उन्हें अतिरिक्त लाभ दिया जाता रहा है। परंतु नवम्बर से इसे बंद कर दिया गया है।
राज्यों द्वारा अपनी परिपूरक योजनाएं भी चलाई जाती हैं। एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में नेशलन फूड सिक्योरिटी एक्ट कार्ड धारक अधिक हैं। राशन कार्ड के मामले में भी यही स्थिति है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार 2019-20 की तुलना में 2020-21 में मनरेगा के अंतर्गत पंजीकृत लोगों की संख्या बढ़ी है। 72 लाख लोगों ने वर्ष में 100 दिवस कार्यावधि को पूरा भी किया है। इसके अतिरिक्त शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली अधिक चुस्त-दुरूस्त रही है।
निःसंदेह, नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट और मनरेगा ने सामाजिक सुरक्षा के दायरे को विस्तृत किया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की भी अहम् भूमिका है, बशर्तें इसमें समाहित खाद्यान्न अधिक पौष्टिक हो, जो स्वस्थ समाज का निर्माण कर सके। एक अनुमान के अनुसार भारत में 33 करोड़ की आबादी गरीब है। फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में 10 करोड़ टन खाद्यान्न भरा होने के बावजूद अगर हम अपने देशवासियों का पेट न भर सके, तो यह भूख की बुलेट ट्रेन चलाने के समान होगा।
अतः केंद्र सरकार को चाहिए कि वह तुरंत कदम उठाते हुए खाद्य सुरक्षा के कवरेज और मात्रा को एक वर्ष के लिए बढ़ा दे। मनरेगा के कार्यदिवसों को 100 की जगह 200 तक कर दे। अगले कुछ महीनों के लिए गरीब परिवारों को वेतन क्षतिपूर्ति की न्यूनतम राशि प्रदान करे, और शहरी रोजगार योजना के अंतर्गत परामर्श की सुविधा प्रदान करे, जिससे आय के सभी स्रोत गंवा चुके परिवारों को एक आस बनी रहे, और जीवन चलता रहे।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित राजेंद्र नारायणन और दीपा सिन्हा के लेख पर आधरित। 13 मई, 2021