मोनोकल्चर वृक्षारोपण का पुनरावलोकन किया जाना चाहिए

Afeias
08 Mar 2018
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Date:08-03-18

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भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने सेटेलाइट चित्र को आधार बनाकर भारत के वन-क्षेत्र में 1 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई है। यह पिछले दो वर्षों की तुलना में दर्ज की गई है। इस प्रकार के डिजीटल चित्र से हरित क्षेत्रों के अंदरुनी भागों की सच्चाई का पता नहीं चल पाता है। शताब्दी के अंत तक बेसलाइन कवर में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फिर भी पुराने वनों की तुलना में पेड़ अभी भी कम हैं। व्यावसायिक उद्देश्य से उगाए गए पेड़ों को हम सामान्य वनों की गिनती में नहीं ले सकते। 1968 के चैम्पियन और सेथ वर्गीकरण के अनुसार भारत में 16 प्रकार के मुख्य और 221 प्रकार के अन्य वन हैं। परन्तु अंग्रेजों से पूर्व एवं अंग्रेजों के काल में भारत में इनका बहुत अधिक दोहन किए जाने से अब ये सीमित मात्रा में रह गए हैं।

पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में मिजोरम, नगालैंण्ड और अरुणाचल प्रदेश में लगभग 1200 वर्ग कि.मी. के वन क्षेत्र के नष्ट होने की बात कही है। देश के अन्य भागों में वृहद स्तर पर वनीकरण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। परन्तु ये कार्यक्रम उत्तरपूर्वी राज्यों की जैव-विविधता की वैश्विक छवि को पहुँची क्षति की भरपाई नहीं कर सकते।

भारत को वनीकरण के कार्यक्रमों का पुनरावलोकन करके मोनोकल्चर वृक्षारोपण की नीति को बदलने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में वैज्ञानिक पहुँच की आवश्यकता है। हाल ही के एक आकलन में खुले वन क्षेत्र के रूप में 3,00,000 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र की पहचान की गई है। इस क्षेत्र को विविध, स्वदेशी वृक्षों के रोपण के काम में लाया जा सकता है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के मूल्यवान वनों की रक्षा के लिए एक समर्पित प्रयास की आवश्यकता है।

हिन्दू में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।

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