शिक्षा के क्षेत्र में एक कदम आगे
Date:21-02-20 To Download Click Here.
भारत में शिक्षा के गिरते स्तर के बीच राजधानी दिल्ली ने सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में कुछ ऐसे सुधार किए हैं, जो प्रतिमान स्थापित करते हैं। हमारे देश में दो प्रकार के शिक्षा मॉडल प्रचलित हैं, जिनमें से एक सीमित वर्गों के लिए है, और दूसरा सार्वजनिक है। दिल्ली सरकार ने इस अंतर को भरने का प्रयत्न किया है। उन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता को विलासिता न मानते हुए एक अनिवार्यता माना। राज्य के बजट में 25ः शिक्षा के लिए आवंटित किया।
इस प्रयास के पाँच प्रमुख अवयव हैं-
1) स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार करना पहला कदम रहा। नई इमारतें, अच्छे क्लासरूम, फर्नीचर, स्मार्ट बोर्ड, स्टाफ रूम, ऑडिटोरियम, लैब, लाइब्रेरी, खेलों की सुविधा आदि से स्कूलों को लैस किया गया। यह शिक्षकों व विद्यार्थियों के उत्साहवर्धन के लिए सार्थक सिद्ध हुआ।
2) शिक्षकों व प्राचार्यों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। शिक्षकों को कैरियर में उन्नति के अनेक अवसर दिए गए। उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय एवं भारत के अन्य उत्कृष्ट संस्थानों से सीखने का अवसर प्रदान किया गया।
3) स्कूल प्रबंधन समिति का पुनर्गठन करके उसे बजट को अपने तरीके से खर्च करने की छूट दी गई। शिक्षकों और अभिभावकों के बीच संपर्क बढाने हेतु पेरेंट-टीचर मीटिंग आयोजित की गईं।
4) बच्चों में सीखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में कई सुधार किए गए। बच्चों में लिखने, पढ़ने, सीखने और सामान्य गणित को हल करने की कला को विकसित करने के लिए इन गतिविधियों को नियमित किया गया।
इसके अलावा नर्सरी से लेकर 8वीं तक के बच्चों के मनोभावों में संतुलन लाने के लिए ‘हैप्पीनेस पाठ्यक्रम‘ की शुरूआत की गई। 9वीं से 12वीं तक के बच्चों में व्यावसायिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए ‘एंटरप्रेन्योरशिप पाठ्यक्रम‘ शुरू किया गया।
5) निजी स्कूलों में दो साल तक कोई फीस-वृद्धि नहीं की गई। इससे 40% बच्चों को लाभ हुआ।
दिल्ली सरकार के शिक्षा संबंधी सुधारों से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 34% बच्चे लाभान्वित हुए। सरकार का उद्देश्य, कक्षा एक से आठ तक के लिखने, पढ़ने में कमजोर बच्चों को नियमित आधार पर ध्यान देने के साथ ही उनमें समीक्षात्मक सोच, समस्या का हल ढूंढने और ज्ञान का वास्तविक जीवन में उपयोग करने वाला मस्तिष्क विकसित करना है। शिक्षा को प्रशासन के प्रमुख एजेंडे में शामिल करके सरकार ने एक मिसाल बना दी है। उम्मीद की जा सकती है कि देश के अन्य राज्य इस पद्धति का अनुसरण करते हुए शिक्षा के गिरे हुए स्तर को ऊपर उठाने में कुछ सफलता प्राप्त करेंगे।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित शैलेंद्र शर्मा के लेख पर आधारित। 12 फरवरी, 2020