वर्तमान सरकार के तीन वर्ष

Afeias
12 Jun 2017
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Date:12-06-17

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इस माह मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे किए हैं। जाहिर है कि इस अवधि में सरकार के कामकाज को लेकर विशेषज्ञों की राय की बाढ़ सी आने वाली है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां पूर्व सरकार से भिन्न आदर्श स्थापित कर रही हैं।सरकार के कार्यकाल के तीन वर्ष में मुख्य दो व्यापक सिद्धांत दिखाई देते हैं। पहला, एक नया संघवाद और दूसरा, न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन। प्रधानमंत्री ने नीति आयोग की तीसरी बैठक में केंद्र और राज्यों की साझेदारी को “टीम इंडिया” का नाम देते हुए मिलजुलकर देश का विकास करने का आवाहन किया। दूसरे, उन्होंने प्रशासनिक सेवा दिवस पर नौकरशाहों को नियामक/नियंत्रक की जगह संबल बनकर काम करने की सलाह दी। उनका मानना है कि भारत को तेज गति से विकास करने के लिए कुछ भिन्न तरीके से काम करने की आवश्यकता है।

  • न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन

इस प्रकार की नीति के उदाहरण हमें विदेशों में मार्गरेट थैचर और रोनाल्ड रीगल की सरकार में मिलते हैं। उनके लिए इसका अर्थ आर्थिक गतिविधियों में सरकार के हस्तक्षेप को न्यूनतम करने से था। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार सरकार को उन स्थानों से पीछे हट जाना चाहिए, जहाँ वह विकास में बाधक बन रही है। अगर वह अधिक नियमों की वजह से व्यापार की बढ़ोतरी में बाधक बन रही है, तो उसे अपनी भूमिका न्यूनतम कर देनी चाहिए (गौरतलब है कि वर्तमान सरकार वल्र्ड बैंक के “इज ऑफ डुईंग बिज़नेस“ में अपने 130वें स्थान से 50वें पर पहुँचने के लक्ष्य को लेकर चल रही है)। दूसरी ओर, सरकार को अति व्यय से बचना चाहिए। इससे राजकोषीय घाटे में कमी होगी। अगर यही धन निजी क्षेत्र खर्च करता है, तो वह बेहतर काम कर सकेगा। इससे मुद्रास्फीति पर भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।सार्वजनिक क्षेत्र में न्यूनतम सरकार का अर्थ उन कमजोर उद्यमों को उखाड़ फेंकने से है, जो सरकारी मदद के बिना नहीं चल सकते। और इसके एवज में फलने-फूलने वाले उद्यमों को स्वायतत्ता  प्रदान करने से है।

इन सबके बीच यह याद रखा जाना चाहिए कि अधिकतम शासन के बगैर न्यूनतम सरकार की नीति को सफल नहीं बनाया जा सकता। प्रति व्यक्ति आय में भारत की जो स्थिति है, उसमें सरकार एकदम से हाथ नहीं खींच सकती। बल्कि उसे कानून-व्यवस्था या जन सुविधाओं के लिए अधिक सक्रिय होना होगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचों के निर्माणादि में उसे पूर्ण योगदान देना होगा, क्योंकि अभी भारत की जनता निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध सेवाओं के खर्च का भार वहन नहीं कर सकती।सरकार को सब्सिडी, बीमा आदि के जरिए गरीबों को अधिकतम सुविधाएं देनी ही होंगी। करना यही है कि ये सभी सुविधाएं इस पारदर्शी और उत्तरदायी तरीके से दी जाएं कि उनका लाभ वंचित लोगों को मिल सके। अधिकतम शासन का यही सर्वोपरी लक्ष्य होना चाहिए।

  • सहकारी संघवाद

भारतीय परिपेक्ष्य में जहाँ तक अधिकतम शासन का प्रश्न है, वह सहकारी और प्रतियोगी संघवाद से ही हासिल किया जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद से ही केंद्र और राज्यों के बीच असमान संबंध चले आ रहे हैं। अभी तक विकास का केंद्रीय नमूना चला आ रहा था, और यह चलन था कि राज्यों के विकास की कुंडली  अंततः केंद्र ही तय करता था। भारत में राज्यों के भौगोलिक और आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए सबके लिए समान नीति या समान पैमान की दलील जँचती नहीं है।

चूंकि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं लंबे समय तक एक राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, इसलिए उन्होंने विकास की इस नब्ज़ को अच्छी तरह पकड़ा है।वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पहली बार केंद्रीय नीतियों में राज्यों की चली है। मुख्यमंत्रियों की उपसमितियों ने कुशल भारत, स्वच्छ भारत, केंद्र प्रायोजित योजनाओं और डिजीटल भुगतान योजनाओं में भागीदारी दी है। वस्तु एवं सेवा कर निर्धारण भी मुख्यमंत्रियों की सहमति से शुरू किया जा रहा है। पहली बार केंद्र सरकार राज्यों के लिए ऐसी कोई खर्चीली योजनाएं नहीं बना रहा है और न ही लाद रहा है, जिनका कार्यान्वयन राज्यों को करना पड़े।

सहकारी संघवाद का परिपूरक प्रतियोगी संघवाद है। यह प्रतियोगिता राज्यों में विकास की होड़ के लिए चल रही है। इस होड़ के कुछ पैमाने; जैसे- ईज़ ऑफ़ डुईंग बिज़नेस, स्वच्छ भारत आदि जाहिर किए जा रहे हैं और कुछ परोक्ष रूप में चल रहे हैं।

संवैधानिक रूप से शिक्षा, श्रम एवं भूमि नीति, स्वास्थ्य आदि महत्वपूर्ण विषय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। श्रम और भू नीतियों के लिए सरकार राज्यों को उदार नियम-कानून बनाने हेतु प्रेरित कर रही है। कुछ राज्य इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। भूमि के संबंध में नीति आयोग भूमि-पट्टा कानूनों के प्रारूप उपलब्ध करा रहा है। धीरे-धीरे केंद्र सरकार उस स्थिति में आना चाह रही है, जहाँ से वह विकास के पैमानों की संकल्पना कर सके, उन पर निगरानी रख सके तथा अच्छी नीतियों और आदर्श कानूनों को राज्यों के साथ साझा कर सके। केंद्र सरकार की कोशिश है कि एक जागरूक मतदाता जैसे अभी केंद्र सरकार को उत्तरदायी मानता है, वैसे ही वह पूरे भारत में अपने-अपने राज्य प्रमुख को उत्तरदायी मानने लगे।भारत के रूपांतरण का अर्थ उसके 29 राज्यों का रूपांतरण है। इसे केंद्र राज्य साझेदारी के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता।वर्तमान सरकार का यह दर्शन निश्चित रूप से केंद्र की पूर्व सरकार से पृथक है। परिवर्तन और रूपांतरण रातोंरात नहीं होते। सही परिस्थितियों में उनके शीघ्र होने की संभावना रहती है।

हिंदू में प्रकाशित धीरज नय्यर के लेख पर आधारित।