वर्क फ्रॉम होम : कितना सुखद , कितना दुखद
Date:30-06-20 To Download Click Here.
पिछले दिनों से फैली महामारी और उसके चलते हुए लॉकडाउन ने अनेक क्षेत्रों में ‘वर्क फ्रॉम होम’ को जीवन की अनिवार्यता बना दिया है। महामारी के फैलाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि अभी आने वाले एक-दो वर्षों तक ऐसी संस्कृति जारी रह सकती है। संभावना और आशंका के इस दौर में प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि ‘वर्क फ्रॉम होम’ वाली प्रणाली किसके लिए कितनी सार्थक है , और इसे कब तक और किन-किन क्षेत्रों में चलाया जा सकता है ?
पक्ष और विपक्ष –
- बहुत से परिवारों में एक ही कम्यूटर होता है। ऐसी स्थिति में स्पष्ट रूप से वह घर के पुरुष के कब्जे में ही रहेगा। इससे महिलाकर्मियों को काम से वंचित होना पड़ेगा। बच्चों की पढ़ाई पर भी प्रभाव पड़ेगा।
- दूसरा भेद आयु को लेकर उत्पन्न हो सकता है। घर में बड़े लोग अपना अधिकार जमाते हुए कम्यूटर अपने अधिकार में रखना चाहेंगे। इससे युवाओं के रोजगार पर प्रभाव पड़ने की आशंका रहेगी।
- देश में एक समान इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है। शहरों के कई क्षेत्रों में इसकी सर्विस अच्छी नहीं है , तो कस्बों , गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों में इसकी क्या उम्मीद की जा सकती है।
- हमारे समाज में महिलाओं के लिए घर के कामों को प्रमुख माना जाता है। घर में उनकी उपस्थिति में उनके व्यावसायिक कामों को गौण समझा जाएगा। उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाएगा।
- ऑनलाइन काम के मानवीय पक्ष को लेकर अक्सर चर्चा की जाती रही है। कार्यालयों में कर्मचारियों को एक-दूसरे का साथ मिलता है। चाय की चुस्की के नाम पर की जाने वाली चर्चाएं और भावनात्माक संवाद अक्सर सार्थक सिद्ध होते हैं।
- घर का वातावरण सभी के लिए शांत और रमणीय नहीं होता। इसको लेकर इस महामारी को ‘शैडो पेन्डेसिक’ नाम दिया गया है। घर में अधिक समय रहने वाली महिलाएं और बच्चे कई बार घरेलू हिंसा का शिकार बनते हैं।
पक्ष
- यदि इसके दूसरे पहलू पर विचार करें , तो यह व्यापक विविधता और समावेश के साथ एक ऐसा मंच है , जो बहुत बड़े समुदाय और क्षेत्र को ज्ञानार्जन और काम करने की सुविधा प्रदान करता है।
सरकार ने इस पक्ष को ध्यान में रखते हुए “भारतनेट” जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं। इसने गांवों में इंटरनेट की सुविधा सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाया है। विशेषकर दक्षिण भारत के राज्यों में तकनीक में भारी निवेश किया गया है।
- ऑनलाइन काम करना , केवल वर्क फ्रॉम होम तक सीमित नहीं है। यह ‘वर्क फ्रॉम एनिवेयर’ है। इसमें व्यक्ति की गतिशीलता प्रभावित नहीं होती। कुछ मामलों में तो इससे व्यक्ति की उत्पादकता बढ़ जाती है।
विभिन्न बिन्दुओं पर विचार करते हुए इस नई डिजीटल संस्कृति से जुड़ा असली मुदृा लचीलेपन का है। ऑनलाइन सुविधा के साथ, भौतिक उपस्थिति और वर्कस्पेस को खत्म नहीं किया जा सकता। आने वाला युग फिजीकल-डिजीटल संसार का होगा। इसमें दोनों पध्दतियों का अपना महत्व और मान्यता होगी।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित लेखों पर आधारित। 12 जून , 2020