क्या भारत जैसे देश के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ अनुकूल है ?

Afeias
16 Sep 2020
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Date:16-09-20

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महामारी के चलते जीवन के अनेक क्षेत्रों में आमूलचूल परिर्वतन देखे जा रहे हैं। इनमें ‘वर्क फ्रॉम होम’ संस्कृति को भी समय की आवश्यकता मानते हुए अपना लिया गया है। ऐसा नहीं कि यह कोई नई पद्धति है। परंतु कोविड पूर्व की स्थिति में इसका सहारा कुछ विशेष परिस्थितियों में ही लिया जाता था। वर्तमान समय में कार्पोरेट जगत के लिए यही सबसे सुविधाजनक और सुरक्षित काम का तरीका माना जाने लगा है।

वर्ल्ड बैंक के एक पत्र में कहा गया है कि किसी देश का आर्थिक विकास और वहाँ उपलब्ध इंटरनेट का दायरा ही वर्क फ्रॉम होम की व्यवहार्यता को बता सकता है। भारत जैसे कम से मध्यम आय वाले देश में इससे असुविधा की स्थिति बन सकती है।

  • ‘वर्क फ्रॉम होम’ – फ्रेंडली जॉब की संभावना व्यक्तिगत आय के साथ बढ़ती है। लेकिन भारत में ‘श्रम बाजार की कमजोरी’ और इंटरनेट तक सीमित पहुँच के कारण ऐसा संभव नहीं है।
  • शिक्षा के साथ ही ‘वर्क फ्रॉम होम’ जॉब की संभावना बढ़ती है। परंतु भारत में शिक्षा के साथ या उसके बाद के शुरूआती दौर के लिए रोजगार के अवसर ही बहुत कम हैं।
  • चीन के बाद भारत में इंटरनेट के सबसे ज्यादा उपभोक्ता हैं। लेकिन 2018 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि अभी भी देश की आबादी का केवल हिस्सा ही उपभोक्ता है। इंटरनेट के उपयोग में भिन्नता राज्य स्तर पर भी है।

कानूनी प्रावधान

  • भारत का श्रम कानून, वर्क फ्रॉम होम को किसी प्रकार से मान्यता नहीं देता है।
  • भारत में किसी संगठन को कार्य से संबंधित अनेक कानूनी दायित्व पूरे करने होते है। इनमें न्यूनतम वेतन अधिनियम, वेतन भुगतान अधिनियम, अनुबंध श्रमिक से संबंधित कानून हैं। इन कानूनों के द्वारा कार्य के घंटे, वेतन, अवकाश आदि का ब्योरा रखा जाता है।

यही कारण है कि भारत में अधिकांश कंपनियों या संगठनों के पास ‘वर्क फ्रॉम होम’ से संबंधित पर्याप्त नीतियां और दिशानिर्देश नहीं हैं, जो ऐसी व्यवस्था में सहयोग दे सकें।

  • केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच लगभग 416 श्रम कानून है, जिनके अनुसार अलग-अलग दस्तावेज तैयार करने पड़ते हैं।

अगर कोई कर्मचारी अपने राज्य से इतर कहीं से वर्क फ्रॉम होम करता है, तो उस पर किस राज्य का कानून लगाया जाएगा ?

विश्व बैंक की रिपोर्ट यह जरूर कहती है कि विकसित देशों में जहाँ 100 में से हर तीसरा रोजगार ‘वर्क फ्रॉम होम’ हो सकता है , वहीं कम आय वाले देशों में यह 100 में से चार ही हो सकता है। इस व्यवस्था से विकसित देशों ने भले ही बहुत लाभ लिया हो, परंतु इससे कर्मचारियों की जवाबदेही, उत्पादकता, सृजनात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव भी देखा जाता है।

भारत जैसे देशों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के लिए ‘वर्क फ्रॅाम होम’ की व्यवस्था कुछ ही स्थितियों में कारगर हो सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित आलेख पर आधारित । 31 अगस्त, 2020

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