रोजगार की और भी हैं राहें
Date:28-09-17
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भारत में बेरोजगारों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत में लगभग 17 करोड़ लोग बेरोजगार की श्रेणी में आते हैं। 2018 तक इस आंकड़े के बढ़ जाने की संभावना है। ऐसा देखते हुए सरकार ने रोजगार सृजन के लिए एक कार्यबल का गठन किया है। हमें चाहिए कि रोजगार के परंपरागत माध्यमों के अलावा अन्य रास्तों में संभावना की तलाश करते रहें।
- कृषि में ट्रेक्टर, हार्वेस्टर और ट्यूबवेल के उपयोग के कारण श्रम की जरूरत कम हो गई है। इसलिए सामान्य कृषि उत्पादों; जैसे- गेहूं और गन्ने का उत्पादन बढ़ाने से रोजगार बढ़ने के बजाय कम होंगे। गन्ने की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती बढ़ाने से गांव के तालाब सूखेंगे और मत्स्य पालन में रोजगार कम होते जाएंगे।
- महंगे कृषि उत्पादों के माध्यम से रोजगार के अवसर बन सकते हैं। चैकोर तरबूज की बाजार में मांग अच्छी है। लेकिन इसको उगाने में खर्च ज्यादा आता है। इसके उत्पादन से रोजगार के अवसर बन सकते हैं। अतः उच्च कीमत के कृषि उत्पादों की तरफ बढ़ना चाहिए।
- हमारे देश में जलवायु की विविधता है। इसका लाभ उठाते हुए रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। जैसे गुलाब के फूल गर्मी में पहाड़ों पर, बरसात में दक्षिणी पठार पर और ठंड में उत्तरप्रदेश में उगाए जा सकते हैं। सरकार को चाहिए कि उच्च कीमत के ऐसे कृषि उत्पादों के लिए सब्सिडी दे। वर्तमान में बिजली और उर्वरक पर दी जा रही सब्सिडी को इस दिशा में मोड़ने से किसान पर कुल भार नहीं बढ़ेगा, परन्तु उसकी दिशा बदलेगी।
- विनिर्माण क्षेत्र में बड़ी कंपनियां ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन कर रही हैं। उनके जरिए रोजगार सृजन कम ही हो रहा है। जैसे एप्पल द्वारा भारत में आई फोन बनाने से तकनीकी उन्नयन अवश्य होगा, परन्तु रोजगार के अवसर नहीं बढ़ेंगे।
- विनिर्माण में रोजगार का आधार अधिकतर छोटे उद्योग ही होते हैं। विडंबना यह है कि इनका दायरा सिकुड़ता जा रहा है। पहले हर शहर में डबलरोटी बनाने की फैक्ट्री होती थी। लेकिन अब यह बड़े शहरों की बड़ी फैक्ट्रियों में बनकर गांवों तक पहुंच रही है।
- सरकार ने छोटे उद्योगों को बचाने के लिए सोचा था कि एक विशेष क्षेत्र में कार्यरत तमाम छोटे उद्योगों को एक समूह में स्थापित किया जाए, जैसे तिरूपुर में होजरी फैक्ट्रियों को। सरकार का विचार था कि इन्हें सामूहिक रूप से प्रदूषण नियंत्रण एवं अन्य प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, तो इनकी लागत में कमी आएगी और ये बड़े उद्योगों के सामने टिक सकेंगे। परन्तु अनुभव बताता है कि छोटे उद्योग तब भी पिट रहे हैं।
- सरकार को इन छोटे उद्योगों को संरक्षण देने की दिशा में पुरानी नीति पर वापस जाना होगा। जैसे ऑटोमेटिक मशीनों से बने कागज़ और पावरलूम से बने कपड़े पर देश में प्रतिबंध लगा दिया जाए, तो हस्तनिर्मित कपड़ा एवं कागज के उत्पादन में करोड़ों रोजगार उत्पन्न हो जाएंगे। परन्तु इस कदम को उठाने के लिए सरकार को बड़े कागज एवं कपड़ा निर्माताओं का सामना करने का साहस जुटाना होगा। देश के नागरिकों को भी महंगा कपड़ा एवं कागज खरीदना पड़ेगा।
- आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के युग में आज इलैक्ट्रॉनिक वस्तुओं के उत्पादन में बड़ी कंपनियों द्वारा रोजगार के अवसर कम सृजित होंगे। लेकिन सॉफ्टवेयर एवं एप्प आदि के बाजार का विस्तार होने की बहुत संभावनाएं हैं। जैसे डॉक्युमेंट्री या कम्प्यूटर गेम्स को युवा अपने मोबाईल पर बना सकते हैं, पंचतंत्र की कहानियों का एप्प बना सकते हैं। परन्तु एप्प बनाने वाले और खरीदने वाले के बीच की खाई को पाटने के लिए सरकार पोर्टल बनाए। साथ ही अलग पुलिस व्यवस्था हो, जिससे खरीदार को जालसाजी का शिकार न बनना पड़े। तभी इस बाजार का विस्तार होगा।
- आने वाले समय में सेवाओं के बाजार का विस्तार होगा। इंटरनेट के कारण दुनिया के लोग आपस में जुड़ रहे हैं। वे दूसरे देशों और भाषाओं की जानकारी चाहते हैं। कानूनी रिसर्च ऑनलाइन सर्वे, ऑनलाइन सलाह इत्यादि बहुत से नए ई-उत्पादों के बाजार बनेंगे। इन सेवाओं के लिए सरकार को ई-पोर्टल एवं ई-पुलिस की व्यवस्था करनी होगी। सरकार को चाहिए कि इन ई-सेवाओं के बाजार के विस्तार की बुनियादी संरचना उपलब्ध कराए।
- स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी ई-सेवाओं का विस्तार हो रहा है। इन सेवाओं को ऑटोमेटिक मशीनों से उपलब्ध कराने की एक सीमा है। अतः भारत में इन दोनों सेवाओं का विस्तृत बाजार बन सकता है। यहाँ की चिकित्सा सेवाएँ अपेक्षाकृत सस्ती हैं। परन्तु सरकार को चाहिए कि इस हेतु आने वाले विदेशी नागरिकों के लिए अलग पुलिस व्यवस्था बनाए, जो विभिन्न भाषाएं बोलती हो एवं त्वरित न्याय उपलब्ध कराए।
सरकार को स्वास्थ्य एवं शिक्षा-सेवाओं के निर्यात के लिए सब्सिडी देनी चाहिए। जैसे विदेशी छात्रों द्वारा अदा की गई फीस को आयकर मुक्त किया जा सकता है।
आने वाले युग में कंपनियों में स्थाई नौकरियां बहुत कम होंगी। सेवाओं के व्यक्तिगत स्तर पर उत्पादन एवं खपत में भारी वृद्धि होगी। संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की कोशिश करने के स्थान पर सरकार को इस बाजार के विस्तार के लिए बुनियादी संरचना उपलब्ध करानी चाहिए।
समाचार पत्रों पर आधारित।