महिला दिवस पर कार्यस्थलों में महिलाओं की स्थिति का आकलन
Date:28-03-19 To Download Click Here.
‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं की उपलब्धियों और योगदान पर कार्यक्रम किया गया। इसके साथ ही महिलाओं से संबंधित ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिन पर सोच और कार्यों को बदले जाने की आवश्यकता है।
पिछले दो वर्षों में महिलाओं को लेकर दो मुख्य समस्याएं उभरकर सामने आई हैं। इनमें पहली तो कार्यस्थलों पर यौन-शोषण की समस्या है। और दूसरी सभी स्तर के कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी से जुड़ी हुई है। कार्यस्थलों में यौन-शोषण के विरूद्ध पहला ‘मी टू’ नामक अभियान अमेरिका में चलाया गया और फिर इसका प्रसार भारत में भी हुआ।
- ‘मी टू’ अभियान के चलते अनेक प्रसिद्ध हस्तियों को अपने पदों से त्यागपत्र देना पड़ा। ऐसे लोगों का बहिष्कार भी किया गया।
- अभियान का प्रभाव अनेक सार्वजनिक और निजी संस्थाओं पर यह पड़ा कि उन्होंने अपने संस्थानों के महिलाओं से जुड़े आंतरिक वातावरण की गहन समीक्षा प्रारंभ कर दी, और उसे बदलने की भी कोशिश की।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के महासचिव महिला-अधिकारों के प्रबल समर्थक हैं। उन्होंने 2030 तक सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता लाने के लिए कुछ मानदण्ड निश्चित किए हैं। इसी के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ प्रबंधन समूह के 44 कर्मचारियों में 23 महिलाएं हैं।
- संयुक्त राष्ट्र ने अपने कर्मचारियों से जुड़ा एक सर्वेक्षण कराया, जिसमें कुछ चौंकने वाले तथ्य सामने आए। पिछले दो वर्षों में हर तीन में से एक महिला कर्मचारी यौन-उत्पीड़न का शिकार हुई है। इससे पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं को भी लंबे समय से चले आ रहे कार्यस्थल के आंतरिक वातावरण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा की जा रही इस अपील के बाद भारत में यह सवाल उठने लगा है कि 2013 के रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम के अंतर्गत कार्यालयों में यौन शोषण के मामलों की छानबीन करने का प्रावधान तो रखा गया है, परन्तु ऐसे मामलों के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं। तो क्या जिला या क्षेत्रीय शिकायत समितियों को इन मामलों का काम सौंपा जाना चाहिए।
वर्तमान सरकार ने पिछले दो वर्षों में कार्यस्थलों में दर्ज यौन शोषण संबंधी शिकायतों के डाटा को सार्वजनिक नहीं किया है। यह स्पष्ट है कि ऐसे मामलों की शिकायतों में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन दोषियों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसके लिए पुलिस की कार्यवाही में विलंब बताया जाता है।
अमेरिका की जनरल इलैक्ट्रिक, एक्सेंचर, पिन्ट्रेस्ट तथा ट्विटर जैसी कंपनियां महिलाओं की भागीदारी को सभी स्तरों पर बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं। उम्मीद की जा सकती है कि अन्य देश भी अमेरिका का उदाहरण सामने रखते हुए अगर प्रयास करें, तो लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और महिलाओं के प्रति यौन शोषण से परे बेहतर स्थितियों को प्राप्त किया जा सकता है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित राधा कुमार के लेख पर आधारित। 8 मार्च, 2019