पर्यावरण प्रभाव आकलन की टूटन

Afeias
09 Jul 2020
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Date:09-07-20

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पिछले कुछ दशकों में पर्यावरण की हानि को ध्यान में रखे बिना कई विकास कार्यक्रम चलाए गए थे। इसके कारण पर्यावरण पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। इन हानियों से चिंतित सरकार ने इसको जांचने के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन की शुरूआत की थी। इसे 30 वर्गों की परियोजनाओं के लिए जरूरी माना गया था। इससे संकट , पर्यावरणीय प्रबंधन और उत्पाद की निगरानी जैसे तीन आधारों पर आकलन किया जाता है।

हाल ही में सरकार ने इसके नए मॉडल के लिए एक मसौदा तैयार किया है , जो अमल में लाए जाने पर 2006 के ई आई ए ( एन्विरोमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट ) का स्थान ले लेगा।

पर्यावरण प्रभाव आकलन के अनेक लाभ हैं  –

  • यह विकास परियोजनाओं के दुष्प्रभाव को कम करने या मिटाने के लिए कम लागत वाले तरीके अपनाता है।
  • विकास परियोजना के लागू होने के बाद पर्यावरण पर पड़ने वाले इनके प्रभाव का विश्लेषण करता है।
  • विकास योजनाओं में न्यूनीकरण रणनीतियां रखे जाने का ध्यान रखता है।
  • विकास योजनाएं , पारिस्थिकीय तंत्र को ध्यान में रखकर बनाई जाएं , इस बात का ध्यान रखता है।
  • यह पर्यावरण और विकास परियोजना को जोड़ने का काम करता है।

इस प्रकार के आकलन के लिए एक एक्सपर्ट अप्रेज़ल कमेटी बनाई जाती है , जिसमें वैज्ञानिक और योजना प्रबंधन के विशेषज्ञ होते हैं। हर योजना को अमल में लाने से पूर्व यह समिति एक रिपोर्ट तैयार करती है। इसे प्रकाशित करके जनता की सलाह के लिए उपलब्ध  कराया जाता है। आपत्तियों के बाद ईएसी इस पर अंतिम रिपोर्ट तैयार करती है , और इसे पर्यावरण व वन मंत्रालय को भेजती है। पर्यावरण प्रभाव आकलन के नए मसौदे से इसकी महत्ता को समाप्त किया जा रहा है। इसे निम्न आधार पर समझा जा सकता है –

  • इसमें कार्योत्तर क्लीयरेंस का प्रावधान है। इस प्रावधान में ई आई ए से परियोजना पूर्व मंजूरी मांगे बगैर भी निर्माण किया जा सकता है। उल्लंघन के लिए मामूली जुर्माना भरा जा सकता है। पहले भी इस प्रकार की अनुमतियों को न्यायालय ने अवैध करार दिया है।
  • मसौदे में परियोजना के पक्षों को सार्वजनिक समीक्षा के लिए बहुत कम समय दिया जा रहा है। इनमें अधिकांश योजनाएं वनवासियों पर प्रभाव डालने वाली होती हैं , जिन्हें सूचना भी नहीं मिल पाती।
  • निगरानी की आवश्यकताओं को कम कर दिया गया है।
  • मूल्यांकन की श्रेणी में आने वाले अनेक उद्योगों को डाउनग्रेड करके इन्हें उससे बाहर कर दिया गया है। जैसे निर्माण उद्योग में केवल बड़ी परियोजनाओं की जांच आवश्यक होगी।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन को कमजोर करना सर्वथा अलोकतांत्रिक है। किसी भी पर्यावरण में समुदायों को भूकंप या बाढ़ के प्रकोप के खतरे में डाल देना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता।

पर्यावरण विनियमन की धज्जियां उड़ाने वाले इस मसौदे का परिणाम हाल ही में असम के तिनसुकिया जिले में तेल के कुंओं में लगी भीषण आग में देखा जा सकता है। दूसरी घटना विशाखापत्तनम के पॉलीमर प्लांट में गैस रिसाव से जुड़ी है। यह प्लांट पिछले कई दशकों से वैध पर्यावरणीय मंजूरी के बिना चल रहा था। इससे सिध्द होता है कि अब पर्यावरण प्रभाव आकलन एक ऐसा व्यापार बन गया है , जिसमें उल्लं‍घनों को संचालित किया जा सकता है। यह याद रखना होगा कि पर्यावरण की हानि की भरपाई नहीं की जा सकती। इससे बेहतर तो उसका बचाव है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सत्यजित सरना के लेख पर आधारित। 27 जून , 2020