पंचायती राज के 25 वर्ष

Afeias
10 May 2018
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Date:10-05-18

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वर्ष 2018 में हम सब संविधान के 73वें और 74वें संशोधन से देश के प्रशासन के स्तर में हुए अभूतपूर्व बदलाव की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। अप्रैल, 1993 में पंचायती राज अधिनियम एवं जून में नगरपालिका अधिनियम लाए गए थे।

इन दोनों ही अधिनियमों की 25वीं वर्षगांठ, वह अवसर है, जब संविधान में किए गए इन संशोधनों के महत्व का आकलन किया जा सकता है। इससे पूर्व देश का प्रशासन केन्द्र, राज्य एवं समवर्ती सूची जैसे तीन स्तरों पर बंटा हुआ था। उदाहरण के लिए रक्षा, विदेश, आयकर जैसे विभाग केन्द्र के पास; कृषि, भू-राजस्व एवं पुलिस जैसे विभाग राज्य के पास और श्रम व शिक्षा जैसे विभाग समवर्ती सूची में रखे गए थे।

दोनों संशोधनों ने स्थानीय निकायों को विधायी और कार्यकारी शक्तियों से लैस कर दिया। इन शक्तियों में स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव कराने, दलितों एवं आदिवासियों के लिए आरक्षण देने, महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने एवं जिला स्तरीय योजना समिति के निर्माण का प्रावधान था।

आज हमारे देश में 2.5 लाख पंचायत और नगरपालिकाओं में 32 लाख चुने हुए प्रतिनिधि हैं। लगभग एक लाख सरपंच अनुसूचित जाति /जनजाति के हैं। लगभग 14 लाख सदस्यों में से 86,000 अध्यक्षों में अधिकतर महिलाएं हैं।

देश के सभी राज्यों में से केरल और कर्नाटक में पंचायती राज की स्थिति अच्छी है। कुछ राज्य कछुआ चाल से चल रहे हैं, और कुछ उछाल लगा रहे हैं। इन सबके बीच और भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है, जिससे पंचायती राज के चरम उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।

  • गतिविधियों की मैपिंग आवश्यक है। केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के दिशानिर्देश के अनुसार गतिविधि मैप को नियमित किया जाए। खासतौर पर इन योजनाओं में गरीबी उन्मूलन के लिए निर्धारित बड़ी धनराशि के सही इस्तेमाल पर नजर रखी जाए।
  • पंचायतों को कार्यक्रमों, वित्त एवं पदाधिकारियों के हस्तांतरण को प्रोत्साहित करने क लिए राज्यों को आर्थिक लाभ दिया जाए।
  • ग्रामसभाओं एवं वार्ड सभाओं में लोगों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर ही जिला स्तर पर योजनाएं बनाई जाएं। 2005 में वी रामचन्द्र समिति की सिफारिशों के आधार पर योजना आयोग ने इससे संबंद्ध परिपत्र निकाला था, परन्तु वह नाकाम रहा।
  • कर्नाटक का उदाहरण लेते हुए पंचायत अधिकारियों का अलग कैडर बना दिया जाए।

इन चार बिन्दुओं के अलावा भी बहुत कुछ किया जा सकता है। शुरूआत इनसे करके दूसरी सीढ़ी चढ़ना अच्छा होगा। तभी सही मायने में विकास हो पाएगा।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित मणिशंकर अय्यर के लेख पर आधारित। लेखक पूर्व पंचायती राज मंत्री हैं। 25 अप्रैल, 2018