प्रशासनिक सुधारों के तीन वर्ष

Afeias
11 Jul 2017
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Date:11-07-17

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भारत में पिछले तीन वर्षों में बहुत से प्रशासनिक परिवर्तन किए गए हैं। इससे पता चलता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार हमारे प्रशासनिक तंत्र को अधिक सक्षम, निर्णायक एवं एकीकृत करने में जुटी हुई है।

  • सबसे पहले परिवर्तन के तहत सभी प्रशासनिक विभागों के कार्य-परिणामों की अंतिम समीक्षा प्रधानमंत्री स्वयं कर रहे हैं। यही कारण है कि प्रमुख परियोजनाओं में क्षमता, गुणवत्ता, गतिशीलता एवं सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखा जा रहा है। उदाहरण के लिए अगर रेल्वे को लें, तो इसमें यात्री एवं माल-भाड़े से होने वाली आय, परिचालन अनुपात, रेल्वे स्टेशनों का पुनरुद्धार एवं सुरक्षा मानकों को मुख्य उपलब्धियों के रूप में गिना जा सकता है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार नीति आयोग द्वारा बनाया गया रेल बजट केन्द्रीय बजट के साथ ही प्रस्तुत किया गया।

बैठकों के मिनट पर नजर रखने के साथ उसके लिए उत्तरदायी व्यक्ति एवं बैठक में विचार किए गए मुद्दों पर अमल किए जाने के समय पर ध्यान दिया जा रहा है। हमारे कुल बजट का 72 प्रतिशत जिन बुनियादी एवं सामाजिक क्षेत्रों में लगाया जाता है, उनकी व्यापक समीक्षा की गई है। समीक्षा के पश्चात् ही महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा रहे हैं।

  • वर्तमान सरकार का द्वितीय उपक्रम सक्रिय प्रशासन कहा जा सकता है। बीच में फंसी प्रमुख बुनियादी परियोजनाओं एवं सामाजिक क्षेत्रों के कार्यक्रमों को समय पर पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री के स्तर तक उनकी समीक्षा की गई है। ‘प्रगति’ एक ऐसा मंच है, जिसे सरकार ने मुख्य योजनाओं में संलिप्त लोगों के लिए तैयार किया है। इस मंच के द्वारा वे अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकते हैं। ‘संबंद्ध’ व्यक्तियों को उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। राज्यों से जुड़ी योजनाओं में राज्यों एवं केन्द्र को एक मंच पर लाया जाता है तथा प्रमुख परियोजनाओं को वरिष्ठतम अधिकारी के सूक्ष्म निरीक्षण में तैयार किया जाता है।

‘प्रगति’ के माध्यम से भिन्न-भिन्न सरकारी एजेंसियों में तालमेल बैठाकर उनके बीच श्रेष्ठ कार्यशैली की साझेदारी बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। ‘प्रगति’ की शुरूआत से लेकर अब तक इसकी 18 बैठकें हो चुकी हैं। इसके माध्यम से जटिल बुनियादी क्षेत्रों में 8.31 लाख करोड़ की परियोजनाओं पर काम हो चुका है। यह काम अलग-अलग राज्यों में किए गए हैं। इसके अलावा 16 मंत्रालयों एवं विभागों के अधीन 38 कार्यक्रमों एवं योजनाओं की समीक्षा की जा चुकी है।

  • राज्यों एवं जिलों के बीच रैंकिंग देकर सरकार ने इनमें आगे बढ़ने की होड़ लगा दी है। इसके कारण राज्यों ने ‘‘ईज़ ऑफ डुईंग बिजनेस’’ को बढ़ावा देने के लिए जटिल नियमों, नियमन एवं अन्य प्रक्रियाओं में भारी-भरकम सुधार किए हैं। प्रतियोगी भावना के चलते तेलंगाना, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे नए बने राज्य दौड़ में आगे निकल रहे हैं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत जिलों की रैंकिंग निश्चित करने से नगरों के नगर निगमों की कार्यप्रणाली में बहुत परिवर्तन आया है। स्मार्ट सिटी योजना में चुने जाने की चुनौती को स्वीकार करते हुए बहुत से नगरों ने अपने शहरीकरण के तरीके में बदलाव किया है। उन्होंने आवास एवं अन्य परियोजनाओं को पूरा करने के उद्देश्य से स्पेशल पर्पसज़ वेहिकल (SPVs) का गठन किया है।
  • सरकार का चैथा प्रयास सचिवों के समूहों का गठन करना है। इसके माध्यम से सरकार ने विभिन्न विभागों के सचिवों को एक मंच पर लाकर उनमें विचारों के आदान-प्रदान और तालमेल को बढ़ावा देने का प्रयत्न किया है। ऐसा करने के पीछे विकास को बढ़ाकर इसके साझीदारों के स्वप्न को पूरा करने का उद्देश्य है।

पिछले वर्ष सचिवों के आठ समूहों का गठन किया गया। इन सबको विकास में तेजी, रोजगार निर्माण रणनीति, ऊर्जा संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों का भार सौंपा गया है। इन समूहों में उन विभागों के वरिष्ठ एवं अनुभवी अधिकारियों को भी शामिल किया गया, जो प्रत्यक्ष रूप से उस क्षेत्र से संबंद्ध नहीं थे। इस प्रयास से निश्चित रूप से अलग विभाग या क्षेत्र के प्रति नवीन सोच को जन्म मिलेगा।लोगों की मानसिकता बदले बगैर परिवर्तन संभव नहीं होता। सरकार ने अभी तक 1,175 जीर्ण-शीर्ण कानूनों को रद्द किया है। रेल बजट को केन्द्रीय बजट के साथ जोड़ा है एवं ऐसे अनेक निर्णायक कदम उठाए हैं, जिससे भारत में व्यवसाय करना सरल हो सके। साथ ही प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।

केन्द्रीय बजट में नियोजित एवं अनियोजित व्यय के बीच भेद को खत्म करने से अब राजस्व घाटे को कम करने से ध्यान हटेगा और पूंजीगत व्यय को बढ़ाने पर ध्यान जाएगा। इससे राजकोषीय घाटे में सुधार किया जा सकेगा।नीति आयोग में वरिष्ठ पदों पर पाश्र्व प्रविष्टियां की जा रही हैं। निजी क्षेत्र के प्रतिभावान लोगों को सरकारी विकास में सहायक बनाया जा रहा है।सरकार के प्रयासों का पूरा रंग दिखने में समय लग सकता है। लेकिन पथ प्रशस्त है।

इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित।

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