न्यायालय के प्रशासनिक कार्यों के लिए सी ई ओ

Afeias
15 Apr 2020
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Date:15-04-20

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ऐसा लगता है कि वर्तमान में सबरीमला के देवता अयप्पा की आत्मा भ्रमित होगी। उनको लेकर चल रहा विवाद, उच्चतम न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा गया है। इसको लेकर दायर की गई पुनर्विचार याचिकाओं का जत्था लंबित पड़ा हुआ है। मजे की बात यह है कि भगवान अयप्पा को भी यह नहीं पता कि उनके समुदाय के निर्धारण का उत्तर उन्हें मिल पाएगा या नहीं। इसी प्रकार बीसीसीआई और कश्मीर से संबंधित धारा 370 से जुड़े कई मामले लंबित पड़े हुए हैं।

इस प्रकार के मामलों की सुनवाई की ओर न्यायाधीश कुछ अग्रसर हुए ही थे कि उनमें से कुछ स्वाइन फ्लू से पीड़ित हो गए। अब कोरोना की विपदा ने तो अनेक मामलों की सुनवाई को स्थगित कर दिया है।

पिछले कुछ महीनों में उच्चतम न्यायालय की प्रशासनिक कार्यप्रणाली को लेकर उसकी आलोचना की जा रही है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्याय-व्यवस्था और आपराधिक जांच के मामलों में इतनी ढील दी गई है कि सरकार को इनका उत्तर देने का कोई तनाव ही नहीं रह गया है। कश्मीर, सीएए और इलेक्टोरल बांड जैसे त्वरित न्याय की मांग वाले मामलों में भी अंतरिम स्तर पर सुनवाई की कोई तत्परता नहीं दिखाई गई है। अतः ऐसे मामलों में एक प्रकार का ठहराव आ गया है।

न्यायालय की इस प्रक्रिया की आलोचना दो स्तरों पर की जा रही है। कुछ तो मानते हैं कि न्यायालय ने काफी ढीलापन दिखाया है, और दूसरे मानते हैं कि न्यायपालिका के कार्य पर कार्यपालिका का प्रभाव है।

इसका कारण न्यायपालिका की अपनी प्रशासनिक कार्यप्रणाली का त्रुटिपूर्ण होना भी कहा जा सकता है। शुरूआत से ही न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों का भार एक ही व्यक्ति पर डाला जाता रहा है। मुख्य न्यायाधीश्श का काम न केवल टिप्पणियां पढ़ने, तर्क-वितर्क सुनने और विस्तृत फैसले सुनाने तक सीमित है, बल्कि उनसे कोर्ट के 2,500 कर्मचारियों की सेवा-जरूरतों और समस्याओं को भी देखना पड़ता है।

इसके साथ ही उसे बुनियादी ढांचे और सुरक्षा, न्यायिक प्रतिनिधि मंडलों से मुलाकात, सिम्पोसिया में उपस्थिति, अपने सहकर्मियों के बीच किसी विषयवस्तु के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित रहने जैसे ढेरों काम करने पड़ते हैं। पहले शीर्ष न्यायालय तक पहुंचने वाले मामलों की संख्या कम होती थी। इसलिए मुख्य न्यायाधीश इन कामों को आसानी से निभा लिया करते थे। परन्तु अब उनके लिए इतना सब करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।

प्रशासनिक कार्यों के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास कई रजिस्ट्रार की एक टीम होती है। इसकी अध्यक्षता सेक्रेटरी जनरल करते हैं। ये सभी जूनियर न्यायिक अधिकारी ही होते हैं, और प्रशासनिक कार्यों में इनको कोई प्रशिक्षण नहीं मिला होता है।

यह सब देखते हुए उच्चतम न्यायालय को एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नितांत आवश्यकता है। यह ऐसा अधिकारी हो, जो न्यायालय के रोजमर्रा के प्रबंधन को देख सके। न्यायालय के पूरे कार्यों के लिए इसे ही उत्तरदायी माना जाए। इससे न्यायाधीश अपना कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो सकेंगे। कार्यकारी अधिकारी को पर्याप्त संचालनात्मक स्वायत्तता प्राप्त हो, और यह न्यायालय की एक समिति के प्रति जवाबदेह हो।

रही बात न्यायिक कार्यों में राजनीतिक या सरकारी हस्तक्षेप की; तो न्यायाधिकारियों के पास कानून की शक्ति होती है, और कर्त्तव्य निष्ठ अधिकारी इसका उपयोग करना जानते हैं। संविधान के अनुच्छेद 144 के अंतर्गत उन्हें न्याय के लिए इसका उपयोग करने का अधिकानर भी दिया गया है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में गोपाल शंकर नारायण के लेख पर आधारित। 28 मार्च, 2020