
‘बुलडोजर-न्याय’ पर न्यायालय का कड़ा रूख
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने उत्तरप्रदेश की स्थानीय सरकार को आदेश दिया है कि बुलडोजर से ध्वस्त किए गए घरों के मालिकों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। न्यायालय का यह आदेश 2021 में ध्वस्त मकान के मालिकों की याचिका की सुनवाई पर दिया गया है। न्यायालय का संदेश स्पष्ट है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
कुछ बिंदु –
1) समस्या यह है कि मकानों को ध्वस्त करने का मामला केवल अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने के लिए नहीं किया जा रहा है। कुछ अपराध में आरोपी को दंड देने के लिए भी किया जा रहा है, जिसे ‘बुलडोजर न्याय‘ कहा जाता है।
2) ‘बुलडोजर न्याय’ वाले कई मामलों में याचिकाकर्ताओं ने सांप्रदायिक पूर्वाग्रह का आरोप भी लगाया है।
3) ऐसे मामलों की संख्या को बढ़ता देखकर उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया था, ताकि सरकारी अधिकारी मनमाने और भेदभाव पूर्ण तरीके से काम न करें। न्यायालय ने कुछ निर्देश जारी किए थे।
4) निर्देशानुसार अनाधिकृत निर्माण को हटाने के लिए पूर्व सूचना, दो सप्ताह की प्रतिक्रिया अवधि और व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। प्रत्येक नगरपालिका/स्थानीय प्राधिकरण के पास अब तक मामले के विवरण का निर्दिष्ट ऑनलाइन पोर्टल होना चाहिए। अधिकारी केवल उन निर्माणों को ध्वस्त कर सकते हैं, जिन्हें मालिकों ने 15 दिन की अवधि के भीतर नहीं हटाया है।
5) न्यायालय का यह निर्णय 2021 की याचिकाओं पर आया है। तब से आज तक या न्यायालय के निर्देश जारी करने के बाद आए मामलों का क्या होगा, इस पर न्यायालय को जल्द समाधान देना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 अप्रैल, 2025