नए भारत के लिए श्रम-सुधार

Afeias
09 Jan 2019
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Date:09-01-19

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भारत में बेरोजगारी की चुनौती से निपटने के लिए कुछ तथ्यों का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है। (1) भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 50-70 लाख रोजगार उत्पन्न करने की आवश्यकता है। (2) 90 प्रतिशत से अधिक कामकाजी लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इसमें न तो रोजगार सुरक्षित है, और न ही सामाजिक सुरक्षा है। (3) संगठित क्षेत्र में लगातार बढ़ती अनौपचारिकता। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों और कर्मचारियों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। जितने भी ट्रेड यूनियन हैं, वे सब औपचारिक क्षेत्र के मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये आगे आते हैं।

वर्तमान सरकार ने अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए दो कदम उठाए हैं।

(1) अनौपचारिक रूप से काम कर रहे रोजगार को औपचारिक क्षेत्र में लाने हेतु प्रोत्साहन देना।

(2) अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने को मजबूर लोगों को सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान देना।

  • इन दोनों बिन्दुओं को सफल बनाने का सबसे पहला प्रयास ‘नियत अवधि अनुबंध’ की शुरूआत करने से किया गया है। इसके अंतर्गत किसी भी श्रमिक या कर्मचारी को स्थायी कर्मचारी की तरह की स्थितियां प्रदान करनी होंगी। इनको वे सारे कानूनी अधिकार भी दिए जाएंगे, जो एक स्थायी कर्मचारी को दिए जाते हैं। इससे व्यवसायियों को भी समय की मांग के अनुरूप कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने में सहायता मिलेगी। श्रमिकों को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
  • औपचारिक रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कंपनियों की अनुपालन दर में भी कटौती की गई है। ईज ऑफ कंप्लायंस या अनुपालन को सहज बनाने के लिए सरकार ने नौ केन्द्रीय कानूनों के अंतर्गत बनाए जाने वाले कंपनी रजिस्टरों की संख्या को 56 से घटाकर 5 कर दिया है।
  • सरकार ने श्रम सुविधा पोर्टल, यूनिवर्सल अकांऊट नंबर और नेशनल कॅरियर सर्विस पोर्टल की शुरूआत की है। यह तकनीक आधारित ऐसी रूपांतरकारी पहल है, जिनसे रोजगार के क्षेत्र में जटिलता कम होगी, ओर जवाबदेही बढ़ेगी। स्टार्ट अप के लिए श्रम कानून अनुपालन दर को कम करने हेतु राज्य व केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों को छः श्रम कानूनों के अंतर्गत सेल्फ -सर्टिफिकेशन के लिए तैयार किया गया है। साथ ही नियमित निरीक्षण करने को भी कहा गया है।
  • कर्मचारी भविष्य निधि कवरेज में विस्तार किया जाना भी सरकार की बड़ी उपलब्धि रही है। 2017 में इसके दायरे में आने से छूट गए कर्मचारियों के लिए सरकार ने कर्मचारी नामांकन अभियान चलाया था। इसके अंतर्गत् लगभग एक करोड़ कर्मचारियों का नामांकन हुआ।

2016 में प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना भी चलाई गई। इस योजना में नए रोजगार देने पर सरकार तीन वर्ष तक भविष्य निधि अपनी ओर से देगी।

  • कृषि में सबसे ज्यादा लोगों के आश्रित होने के बाद दूसरा नंबर निर्माण उद्योग का आता है। यह क्षेत्र सबसे ज्यादा श्रमिकों को अस्थायी रोजगार देता आया है। भवन एवं अन्य निर्माण कार्य कर्मचारी अधिनियम के अंतर्गत इन श्रमिकों का पंजीकरण किया गया है। इनकी संख्या 3 करोड़ के आसपास है। इन श्रमिकों के पलायन करने पर यूनिवर्सल एक्सप्रेस नंबर इनकी पोर्टेबिलिटी को बनाए रखता है।

2017 में सरकार ने भवन एवं अन्य निर्माण कार्य श्रमिक कानून 1998 में भी संशोधन किया है। इसके द्वारा पंजीकृत प्रतिष्ठानों को यूनीफाइड एनुअल रिटर्न फाइल करने में पारदर्शिता दी जा सकेगी।

  • 2017 में मजदूरी के भुगतान अधिनियम में यह प्रावधान जोड़ा गया है कि सरकार चाहे, तो उद्योगों या अन्य प्रतिष्ठानों को केवल बैंक खातों के माध्यम से मजदूरी के भुगतान का निर्देश दे सकती है।
  • समाजिक सुरक्षा के लिए भी सरकार प्रयत्न कर रही है। इससे संबंधित श्रम कोड बनाए जाने का कार्य अपने चरम पर है। इस कोड का आधार संविधान है।

श्रम कानूनों की नींव अच्छी भावना के साथ रखी गई थी। परन्तु इनकी डिजाइनिंग गलत होने के कारण श्रमिक वर्ग के छोटे से भाग को ही इसका लाभ मिल पा रहा है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से प्रकाशित मासिक डाटा में सरकार द्वारा श्रम सुधार की दिशा में उठाए जा रहे कदमों का स्पष्ट प्रतिबिंब देखने को मिल सकता है। भारत को अगर विश्व में अपनी आर्थिक पकड़ बनानी है, और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अपना स्थान और ऊँचा उठाना है, तो श्रम सुधारों की ओर अनिवार्य रूप से ध्यान देना होगा।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित गोपाल कृष्ण अग्रवाल के लेख पर आधारित। 22 नवम्बर, 2018

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