कूटनीति और आस्था : करतारपुर गलियारा

Afeias
10 Jan 2019
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Date:10-01-19

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हाल ही में भारत के डेरा नानक गुरूद्वारे से पाकिस्तान के करतारपुर तक पाँच किलोमीटर लंबे वीज़ा मुक्त गलियारे के निर्माण की शुरुआत हुई है। इसका मुख्य उद्देश्य अगले वर्ष आने वाली गुरुनानक देव की 550वीं जयंती को यादगार बनाना है। उन्होंने अपने जीवन के 18 वर्ष करतारपुर में बिताए थे। विभाजन के दौरान इस हिस्से के पाकिस्तान में जाने के बाद से ही भारत के सिक्ख श्रद्धालु इस पवित्र स्थल की यात्रा  में सुगमता की मांग करते आ रहे थे।

एक इस लिहाज़ से इस गलियारे के निर्माण को भारत-पाकिस्तान के कटु संबंधों में भी सौहार्द बढ़ाने का रास्ता माना जा रहा है। हांलाकि भारत की वर्तमान सरकार ने स्पष्ट कह दिया है कि जब तक पाकिस्तान कश्मीर में हिंसक गतिविधियों को शह देना बंद नहीं करता, तब तक कोई बातचीत संभव नहीं है। पिछले एक दशक से पाकिस्तान भारत के साथ जिस प्रकार का रवैया अपना रहा है, उन परिस्थितियों में करतारपुर गलियारे का निर्माण बहुत महत्व रखता है।

पाकिस्तान के पिछले रवैये को देखते हुए वीजा-मुक्त यात्रा की छूट देना एक बात है। परन्तु दूसरे दृष्टिकोण से देखने पर इसमें अनेक आशंकाएं जन्म लेती हैं।

  • खालिस्तान की मांग करने वाले अलगाववादी सिक्ख समुदाय को पाकिस्तान का समर्थन लगातार मिलता रहा है।
  • पठानकोट हमले में पाकिस्तानी सेना की कुटिलता सिद्ध हो चुकी है। इसके अलावा भी पाकिस्तान पंजाब में विभिन्न अवांछित और विनाशकारी गतिविधियों को अंजाम देता रहा है।
  • बीते दशक के मध्य में कश्मीरियों को भी नियंत्रण रेखा के पार जाने हेतु वीजा-मुक्त यात्रा के बारे में समझौता किया गया था। यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द बन गया था। इसकी तुलना में सिक्ख तीर्थयात्रियों को काफी छूट दी जानी है। लेकिन इसकी आड़ में पाकिस्तान की कुटिल गतिविधियों के बढ़ने से इंकार नहीं किया जा सकता।

इस संदर्भ में पहला प्रश्न उठता है कि इतनी आशंकाओं के रहते हुए भी भारत सरकार ने गलियारे को खोलने का प्रस्ताव क्यों स्वीकार किया?

गुरुपर्व पर प्रधानमंत्री ने दोनों देशों की आपसी नकारात्मकता को लोगों के दिलों को जोड़ने से अलग रखने की बात कही थी। धार्मिक कूटनीति या दूसरे शब्दों में कहें, तो प्रधानमंत्री की विदेश नीति का एक प्रमुख अंग ‘आस्था’ रहा है। उप महाद्वीप के पड़ोसी देशों और उससे परे अन्य देशों से जुड़ने के लिए भी उन्होंने इसका प्रयोग किया है। जापान दौरे के दूसरे दिन ही वे उनकी धार्मिक नगरी पहुंचे थे, जहाँ श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करके उन्होंने जापानियों का दिल जीत लिया था। 2015 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मुलाकात में भी दोनों नेताओं ने गलियारे के निर्माण को प्राथमिकता दी थी।

क्या गलियारे के निर्माण की स्वीकृति देकर भारत सरकार कोई खतरा मोल ले रही है?

2014 के अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को आमंत्रित करके और 2015 के अंत में अल्प अवधि सूचना पर पाकिस्तान पहुँचकर, प्रधानमंत्री ने खतरे मोल लेने के व्यक्तित्व का परिचय दे दिया है।

एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में सौहार्द की शुरुआत पंजाब से ही की जा सकती है। दोनों देशों में पंजाब की सीमाओं के पार व्यावसायिक संबंधों और जन-संपर्क की मांग पहले भी की जाती रही है। अगर राजनीतिक इच्छा-शक्ति काम कर जाती है, तो धार्मिक पर्यटन, व्यवसाय, विद्युत और हाइड्रोकार्बन में सीमा पार व्यापार आदि के बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सी. राजा मोहन के लेख पर आधारित। 27 नवम्बर, 2018

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