चीन का आर्थिक गलियारा और भारत

Afeias
22 May 2018
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Date:22-05-18

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यूरेशिया के साथ अपने आर्थिक सहयोग को बेहतर बनाने के लिए चीन ने “वन बेल्ट वन रोड़“ नामक योजना की शुरूआत की है। 2013 में इसकी घोषणा के साथ ही अनेक देशों ने इसका हिस्सा बनना स्वीकार किया है। इसी का एक हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी पी ई सी) के रूप में पाक- अधिकृत कश्मीर के एक भाग से गुजरता है। मुख्यतः यही कारण है कि भारत इस योजना का लगातार विरोध कर रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि चूंकि यह गलियारा भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है, इसलिए यह अस्वीकार्य है।

दूसरी ओर, चीन ने इस क्षेत्र में यह जानते हुए भी भारी निवेश का खतरा उठाया है कि यह क्षेत्र दो परमाणु सम्पन्न दुश्मन देशों का विवादास्पद क्षेत्र है। फिर भी अगर यह गलियारा क्रियाशील हो जाता है, तो इससे दक्षिण एशिया में भारत के संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा। दूसरे, इस क्षेत्र का औद्योगिक उपयोग शुरू होने के बाद अगर यह सफल रहता है, तो पाकिस्तान पर इसकी दावेदारी और भी मजबूत हो जाएगी।

इस आर्थिक गलियारे का विरोध करना भारत के लिए लाजिमी रहा है। अगर वह ऐसा नहीं करता, तो अंतराष्ट्रीय मंच पर यह भारत की कमजोरी को दर्शाता।

निश्चित रूप से सी पी ई सी, भारत-पाकिस्तान के संबंधों में एक बहुत बड़ा रोड़ा है परन्तु अमेरिका के साथ मिलकर भारत का विरोध प्रदर्शन शायद ही सफल होगा। इसका कारण यह है कि चीन ने बेल्ट रोड़ बनाने के लिए विश्व बैंक और अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी वैश्विक संस्थाओं से मदद नहीं ली है। चीन के सरकारी बैंक विश्व पूंजी बाजार में निजी निवेशकों से कर्ज ले रहे हैं, और इस रकम को द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से उन 65 देशों को दे रहे हैं, जिनके बीच से बेल्ट रोड गुजरनी है।

भारत क्या कर सकता है?

  • भारत के सामने दो परस्पर विरोधी मुद्दे हैं। एक तरफ विश्व अर्थव्यवस्था के असंतुलन को देखते हुए उसे बेल्ट रोड में सहयोग देना चाहिए या संप्रभुता के लिए विरोध करना चाहिए। बेल्ट रोड के माध्यम से चीन अपनी फैक्ट्रियों में उत्पादित माल को यूरोप पहुंचाना चाहता है। वर्तमान में विश्व अर्थव्यवस्था में विनिर्मित वस्तुओं का हिस्सा 9 प्रतिशत ही रह गया है। इस योजना के द्वारा चीन उत्पादित माल के नौ प्रतिशत हिस्से में अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रहा है। जिस रोड से चीन अपने माल को यूरोप पहुंचाना चाहता है, उसी रोड से भारत भी अपने माल को यूरोप पहुंचाने का प्रयास करे। जैसे आज हम अमेरिका द्वारा बनाए इंटरनेट से अपने सॉफ्टवेयर को दुनिया में पहुंचा रहे हैं। यदि भारत को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए एक गलियारा बनाने की अनुमति मिल जाए, तो वह मध्य एशिया और यूरोपीय बाजारों में अपनी पहुंच बना सकता है। चीन से वार्ता करके उसे पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। दूसरे मार्ग, कश्मीर और तिब्बत के माध्यम से भी हम बेल्ट रोड से जुड़ सकते हैं।, ताकि हमारा माल किफायती दामों में यूरोप पहुंच सके, और बेल्ट रोड का लाभ केवल चीन को मिलने के स्थान पर हमें भी मिले।
  • भारत के सामने दूसरा तरीका यह है कि वह विश्व आय के 90 प्रतिशत सेवा क्षेत्र के हिस्से में अपनी पैठ बनाए। एक महत्वाकांक्षी ग्लोबल सर्विसेस पाथवे योजना बनाए, जिसके माध्यम से कंप्यूटर गेम्स, सॉफ्टवेयर, यातायात, अंतरिक्ष यात्रा आदि का वैश्विक बाजार विकसित हो। इस माध्यम से हम चीन को चुनौती दे सकते हैं।
  • तीसरे, और कुछ नहीं तो भारत को चाहिए कि वह चीन को कर्ज दे रहे अनेक वैश्विक बैंकों में से एक न्यू डेवलपमेंट बैंक पर दबाव डाले कि वह बेल्ट रोड को ऋण न दे। इस बैंक में भारतीय हिस्सेदारी है।

ऐसा लगता है कि भारत को पाकिस्तान के साथ 70 साल से चल रहे अपने विवाद के चलते बेल्ट रोड के जरिए अपनी जनता के जीवन स्तर को सुधारने के अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। बेल्ट रोड के सार्थक पक्ष को समझकर अपने देश की आय बढ़ाने को प्राथमिकता देनी चाहिए।

विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।

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