नगरों की योजना कैसे तैयार की जाए

Afeias
08 Jan 2019
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Date:08-01-19

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भारतीय नगरों पर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है। उस तुलना में हमने नगरों की प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त नहीं रखा है। दरअसल नगर-प्रबंधन और नगर-नियोजन, दोनों ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। इनकी चुनौतियों को शहरी निकायों ने गंभीरता से कभी नहीं लिया। यही कारण है कि विदेशी नगरों की तुलना में हमारी नगर-व्यवस्था इतनी अस्त-व्यस्त चलती आ रही है।

इस मामले में अगर हम विदेशों का उदाहरण लें, तो उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। विश्व-युद्ध के अवसान के पश्चात् जब चिंतक, वास्तुकार एवं दार्शनिक विचार करने बैठे, तो उन्होंने नए सिरे से शहरों के निर्माण और उनकी व्यवस्था के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू किया। क्रमशः नगर-नियोजन से संबंधित अनेक सिद्धांत सामने आने लगे। इनमें लुईस किबले ने अपने ब्लूप्रिंट सिद्धांत में कहा कि, ‘‘एक वास्तुकार, घरों के साथ जैसा करता है, वैसा ही शहरों के साथ योजना द्वारा किया जाता है।’’ तत्पश्चात् एक प्लूरलिस्ट सिद्धांत आया, जिसमें नगर-नियोजन के लिए एक ही जगह अनेक एजेंसियों को संलग्न करने की बात कही गई। नगर-नियोजन में सबसे बड़ी क्रांति तब आई, जब नियोजकों ने नगरों के जटिल और गतिशील तंत्रों का अनुमान, गणितीय आधार पर लगाना प्रारंभ किया। क्योंकि बढ़ते औद्योगीकरण और उसके आनुषांगिक प्रभावों का प्रबंधन करना कोई आसान काम नहीं था।

कम्प्यूटिंग, सांख्यिकी, अनुकूलन और एल्गोरिदम जैसे गणितीय मॉडलों को अंगीकृत करके विश्व के अनेक नगरों की जटिल संरचनाओं को सरल बनाया गया। न्यूयार्क, लंदन और पेरिस जैसे बड़े और खूबसूरत नगर, इसी सिद्धांत का परिणाम हैं। पश्चिमी देशों के अनेक विश्वविद्यालयों ने प्लांनिंग या योजना में प्रशिक्षण देने की शुरूआत की। इसके लिए उन्होंने ऐसे प्रतिभा-संपन्न लोगों को चुना, जो अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ थे।

भारत में नगर-नियोजन और उससे संबंधित शिक्षा, पश्चिमी देशों से बहुत भिन्न है। हमारी नियोजन संबंधी शिक्षा में विद्यार्थी किसी नगर में जनसंख्या के अनुरूप बसों की अपेक्षित संख्या जैसे मूलभूत प्रश्न का उत्तर देने योग्य भी नहीं बन पाते हैं। इसके लिए गणितीय मॉडल के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए। नियोजन के क्षेत्र में अक्सर कहा जाता है कि नगर को एक जीव की तरह समझा जाए। जीव की बीमारियों को दूर करने के लिए जिस प्रकार सक्षम चिकित्सकों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार नगरों की समस्याओं के निराकरण के लिए भी तमाम विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।

अतः नगरों का विकास और नियोजन पूरी गणना के साथ किया जाना चाहिए। तभी यह सफल हो सकता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित श्रीरंग सोहोनी के लेख पर आधारित। 26 नवम्बर, 2018

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