जीन एडिटिंग

Afeias
07 Jan 2019
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Date:07-01-19

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जीन एडिटिंग, आधुनिक विज्ञान की ऐसी नई खोज है, जो किसी जीव के दोषपूर्ण जीन को बदलकर एक नया कार्यात्मक जीन डाल देती है। इसके माध्यम से अनुवांशिक बीमारियों को दूर करने का दावा किया जा रहा है। इस तकनीक की खोज कुछ वर्षों पूर्व की गई थी। इसे सी आर आई पी आर के नाम से जाना जाता है।

हाल ही में चीन के एक वैज्ञानिक ने इस तकनीक का प्रयोग करके सात जोड़ों के जीन में सुधार करने का दावा किया है। इस उपचार के बाद जुड़वां बच्चों का जन्म भी हो चुका है। वैज्ञानिक जिआनकुई के दावों को परखे जाने का काम शुरू किया जाना है।

जीन एडिटिंग की सस्ती तकनीक पर विश्व भर में काम किया जा रहा है।इस खोज के मानव पर प्रयोग से जुड़ी अनेक नैतिक एवं चिकित्सकीय आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं।

(1) इस तकनीक के प्रभावों के बारे में अभी ठीक से पता नहीं है। इस प्रकार के प्रयोग यदि मानव-भ्रूण पर अवांछित प्रभाव डालेंगे, तो यह मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन होगा।

(2) अगर यह तकनीक सफल सिद्ध होती है, तो यह संतति-विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला देगी। इसके बाद लोग अपनी संतानों में पसंदीदा और नापसंद वाली जीन एडिटिंग करवाने में लग जाएंगे, जो आनुवांशिकी के साथ एक प्रकार का खिलवाड़ सा बन जाएगा।

जीन एडिटिंग अनुसंधान पर कड़े अनुशासन की आवश्यकता है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश व नियम बनाए जाने चाहिए। विश्व तो पहले ही प्राणघाती (किलर) रोबोट के निर्माण से थर्राया हुआ है। 21वीं शताब्दी के विज्ञान का क्षेत्र इतना व्यापक हो चला है कि इसकी घातक शक्तियों पर पैनी नजर रखी जानी चाहिए। विज्ञान को अभिशाप और वरदान दोनों ही माना जाता है। अतः हमें किसी प्रक्रिया को सिर्फ इसलिए योग्य नहीं मान लेना चाहिए, क्योंकि वह वैज्ञानिक विधि से तैयार की गई है। इसकी सफलता के लिए तकनीक के मानव-जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अन्यथा इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के संपादकीय पर आधारित। 29 नवम्बर, 2018

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