
विकसित भारत के लिए कृषि की भूमिका के लिए आवश्यक तथ्य
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2047 में भारत जब अपनी आजादी की 100वीं वर्षगांठ मना रहा होगा, तब के लिए हमने विकसित भारत का लक्ष्य निर्धारित किया है। कृषि क्षेत्र नवाचार, आर्थिक ताकत और पर्यावरणीय वहनीयता के माध्यम से इस लक्ष्य की पूर्ति में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। 1950-51 में देश का खाद्यान्न उत्पादन 5.08 करोड़ टन था। 2024-25 में यह 35-39 करोड़ टन के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। यह कृषि में क्रांतिकारी बदलाव का सूचक है।
कृषि क्षेत्र के लिए चुनौतियाँ – जोत का घटता आकार, जलवायु परिवर्तन, संसाधनों का ह्यस, उपभोक्ता मांगों में तेजी से बदलाव और तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा।
कृषि क्षेत्र के लिए संभावनाएँ – जैव तकनीकि, परिशुद्ध कृषि, डिजिटल कृषि और टिकाऊ व्यवहारों में प्रगति की असंख्य संभावनाएँ हैं।
लचीलेपन और संपन्नता के लिए शोध – जीनोमिक्स, जैव तकनीकि एवं टिकाऊ संसाधन प्रबंधन प्राथमिकता के लिए शोध होने चाहिए।
कृषि विविधता (बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन), कृषि यांत्रीकरण तथा कृषि प्रसंस्करण तथा कटाई के बाद होने वाले नुकसान पर भी शोध होना चाहिए। नीतिगत तथा बुनियादी ढांचा सुधार भी हो। नई तकनीक जैसे जीन एडिटिंग, रिमोट सेंसिंग एवं भौगोलिक सूचना तंत्र, एआइ एवं मशीन लर्निंग का प्रयोग करना चाहिए।
नए नेतृत्वकर्ताओं का उद्भव – कृषि क्षेत्र में जो विषय शोधात्मक हैं वे कृषि पाठ्यक्रम में शामिल होने चाहिए। साथ ही कृषि कारोबार प्रबंधन और कृषि निर्यात रणनीति भी पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए। छात्रों की अगुवाई वाली स्टार्टअप इकाइयों के विकास के लिए कृषि इन्क्यूबेटर विकसित किया जाना चाहिए। कृषि विश्वविद्यालयों को वैश्विक विश्वविद्यालय शोधतंत्र से जोड़ा जाना चाहिए।
नई तकनीक का प्रसार –
तकनीक के जल्दी एवं प्रभावी प्रसार के लिए विस्तार सेवाओं को मोबाइल एप्लिकेशन, किसान हेल्पलाइन, ऑनलाइन सलाहकार प्लेटफार्म, व्हाटसऐप ग्रुप और यूट्यूब ट्यूटोरियल्स का लाभ उठाना चाहिए।
कृषि विज्ञान केंद्रों के आधुनिकीकरण के साथ-साथ उन्हें उच्च कृषि तकनीक एवं डाटा आधारित सलाहकार सेवाओं से जोड़ा जाना चाहिए।
किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से ज्ञान प्रसार व विपणन के रास्ते खोले जा सकते हैं।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल, गैर-सरकारी संगठनों के जुड़ाव और ग्रामीण स्टार्टअप इकाइयों के साथ सहयोग से एक जीवंत कृषि विस्तार प्रणाली तैयार की जा सकती है।
कृषि शोध एवं विकास में निवेश –
कृषि शोध एवं विकास में हमें सकल घरेलू उत्पाद का 1% खर्च करना चाहिए, जो अभी 0.65% ही है। तभी हम कृषि विकास में दूसरे देशों से प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे।
विकसित भारत का हर किसान श्रेष्ठ विज्ञान एवं तकनीक सुविधा से लैस होना चाहिए। तथा कृषि एक सम्मानित एवं लाभकारी व्यवसाय होना चाहिए।