टी.बी. : उपचार और रोकथाम ही उपाय
Date:02-04-18 To Download Click Here.
भारत में क्षयरोग यानी टी.बी. नासूर की तरह फैला हुआ है। इसके रोकथाम के लिए किए गए अनेक उपायों के बावजूद प्रति एक लाख जनसंख्या पर 200-300 मरीज प्रति वर्ष दर्ज किए जाते हैं। पश्चिमी यूरोप में यह संख्या, प्रति एक लाख पर 5 है।
प्रधानमंत्री ने टी.बी. का उन्मूलन, लक्ष्य से 5 वर्ष पहले करने की घोषणा की है। यह एक सकारात्मक सोच हो सकती है, क्योंकि धरातल के स्तर पर वांछित लक्ष्य की निगरानी के बिना राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) एक मानवतावादी कार्यक्रम तो हो सकता है, जो टी.बी. का निदान और उपचार कर सकता है, लेकिन उन्मूलन नहीं ।
- टी.बी. एक संक्रामक रोग है। इसका संक्रमण टी.बी. के ही कीटाणु से होता है। यह फेफड़ों, मस्तिष्क, आँखों, हड्डियों, लीवर, आंतों आदि को प्रभावित कर सकता है। टी.बी. के प्रारंभिक लक्षण अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हैं। अतः यह बीमारी जल्दी पकड़ में नहीं आती। चिकित्सक भी इसको लेकर ऊलझन में रहते हैं। इसलिए निदान में देर हो जाती है।
टी.बी. के तीन स्तर होते हैं -संक्रमण, बढना, संचरण। इस महामारी से निपटने के लिए एकजुट होकर युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है। टी.बी. के कारणों, रोकथाम के उपयों एवं इससे जुडे भ्रम को दूर किया जाना आवश्यक है।
- यह सबसे जल्दी वायु के माध्यम से फैलता है। सार्वजनिक रूप से छींकने, खाँसने और थूकने से जुडी जागरूकता फैलायी जानी चाहिए। ऐसा होने पर संक्रमण की रोकथाम जल्द हो सकेगी।
- फेफड़ों के टी.बी. के मरीज के कीटाणु कई हफ्तों तक सक्रिय रहते हैं। जब तक उसका संपूर्ण ईलाज होता है, तब तक वह अपने संपर्क में आने वालों को संक्रमित कर चुका होता है। ऐसे में, मरीज का ईलाज जल्द-से-जल्द शुरू किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम दो हफ्तों की खाँसी के बाद ही लैब परीक्षण का दिशा निर्देश देता है। तब तक इसके कीटाणु फैलने लगते हैं।
- टी.बी. की पहचान प्रारंभिक अवस्था में संभव करने के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग अति आवश्यक है। यूनिवर्सल प्राइमरी हेल्थ केयर, एक ऐसा तंत्र है, जिसके माध्यम से अनेक देशों ने टी.बी. जैसी घातक बीमारी पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है।
- हम में से बहुत से लोग सुप्त क्षयरोग या लेटेंट टी.बी. से ग्रसित होते है। इसके परीक्षण के लिए टी एस टी नामक त्वचा परीक्षण किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार 40% से 70% टी.बी. के मरीज ऐसे हैं, जिन्हें सुप्त कीटाणुओं का पता नही होता। ये कीटाणु औसतन 20 सालों के बाद भी सक्रिय हो सकते हैं। तब इस रोग का संचरण करते हैं। अतः 5-10 आयु वर्ग के सभी बच्चों का टीएसटी परीक्षण किया जाए। इससे रोकथाम होगी।
इस प्रकार हम 20 वर्ष बाद आने वाले रोगियों का उपचार आज करके उनसे मुक्ति पा लेंगे। सक्रिय हो चुके रोगाणु के मरीजों की संख्या को धीरे-धीरे ही कम किया जा सकेगा।
टी.बी. के रोगाणु से निपटने के लिए संक्रमण, बढ़ाव और संचरण जैसे तीन स्तरों पर जमकर काम करने की जरूरत है। बायो- मेडिकल और सामाजिक जागरूकता भी महत्वपूर्ण कारक है, जो इसके नियंत्रण में सहयोगी बनेंगे। हमें सभी उपयों को जल्द लागू करना होगा, अन्यथा ड्रग रेजिस्टेंट टी.बी. के मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढती जाएगी।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित टी. जेकब जॉन और शोभा वर्धमान के लेख पर आधारित।