क्वांटम सैटेलाइट एनक्रिप्श तकनीक
Date:06-09-17
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आधुनिक दौर में पारदर्शिता की चाहे जितनी बातें की जाती हों, परन्तु प्रत्येक देश और उनमें काम करने वाली संस्थाएं अपनी-अपनी गोपनीयता को लेकर काफी चिंतित हैं। इसी को बनाए रखने के लिए हाल ही में चीन ने क्वांटम मैकेनिक्स (QM) के क्षेत्र में कुछ ऐसा खोज निकाला है, जिसने विज्ञान के क्षेत्र में पश्चिमी देशों की प्रभुता को पीछे ढकेल दिया है।
- क्वांटम मैकेनिक्स क्या है?
यह भौतिकी की एक गूढ़ कला है। यह उपआणविक कणों के उस अदृश्य जगत से संबंद्ध है, जहाँ तीव्रता से काउंटर करने के नियम काम करते हैं।
क्यू एम के भाग-इलैक्ट्रॉन और प्रोटॉन हैं, जो अद्र्धजीवित अवस्था में रहते हैं। इसकी प्रणाली को समझना मुश्किल है। लेकिन वैज्ञानिक जगत में इसे पृथ्वी के लिए उपयोगी बनाए जाने की कोशिश चलती रहती है। दूर-संचार के क्षेत्र में इसे इंटीग्रेटेड सर्किट चिप या फाइबर ऑप्टिक लाइन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- कार्यपद्धति
चीन ने विश्व के अन्य देशों से दस कदम आगे बढ़ते हुए अपने अध्ययन में यह बताने का प्रयत्न किया है कि उपग्रह तकनीक और क्वांटम मैकेनिक्स के मेल से कैसे गोपनीयता बरकरार रखते हुए संदेशों को हजार कि.मी. से भी ज्यादा दूर तक भेजा जा सकता है। इस दौरान इसे कोई भी डिकोड नहीं कर सकता।
- वर्तमान व्यवस्था
फोटॉन का जोड़ा आपस में क्वांटम गुणों की साझेदारी करता है। इन्हें आपस में उलझे हुए (Entangled) फोटॉन कहते हैं।वर्तमान इलैक्ट्रॉतनिक तकनीक में एनक्रिप्शन या कोडिंग के लिए दो दल होते हैं। ये आपस में इसकी ’की’ को भी शेयर करते हैं। परन्तु इनके अलावा भी तीसरा ऐसा सेंध लगाने वाला हो सकता है, जो कोड को डिकोड कर ले।
क्वांटम मैकेनिक्स के फोटॉन को मैसेज के दोनों सिरों पर एप्लाई करके कोड की चोरी को रोका जा सकता है। हांलाकि क्यू एम के इस सिद्धांत को 1980 में ही खोज लिया गया था, परन्तु इस फोटॉन के कण बहुत नाजुक होते हैं, और हवा के अन्य कणों के संपर्क में आकर इनके नष्ट हो जाने का भय होता है। इसलिए अभी तक इनको आजमाया नहीं जा सका था। चीन ने यह कर दिखाया है। उसने एक उपग्रह के माध्यम से दो ग्राउंड-स्टेशन के बीच 1200 कि.मी. की लंबी दूरी तक संदेश भेजा।
- उपयोग
ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करने वालों के लिए यह एक राहत पहुँचाने वाली तकनीक है। भारत में ‘‘डिजीटल इंडिया मिशन’’ की शुरूआत एवं विमुद्रीकरण के बाद से अधिकांश लोगा ऑनलाइन ट्रांजैक्शन पर ही निर्भर रहने लगे हैं। इसके अलावा सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवाओं में भी गोपनीयता बढ़ेगी।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित जैकब कोशी के लेख पर आधारित।