निजता में सेंध :बिग डाटा तकनीक

Afeias
05 Sep 2017
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Date:05-09-17

 

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सर्वोच्च न्यायालय ने यद्यपि निजता को एक मौलिक अधिकार मान लिया है परन्तु हमारी निजता में सेंध लगाने वाले बहुत से हैं और इनके पास ऐसे बहुत तरीके हैं जिनको पकड़ पाना बहुत मुश्किल है।उन कार्पोरेशन को याद करने की कोशिश कीजिए जो किसी न किसी तरीके से आपके बारे में सूक्ष्म जानकारियां हासिल करके आपके लिए जरूरी या गैर जरूरी वस्तुओं को भी बेचने में सफल हो रहे हैं।ये कार्पोरेशन उपभोक्ता की प्रवृत्ति को पकड़़ने की कोशिश करते हैं। इसके लिए वे खरीदे गए सामान एवं सेवाओं के डाटा एकत्रित करते रहते हैं।बिग डाटा तकनीक एक ऐसी ही अद्भुत प्रणाली है जिसके पास वृहद स्तर पर डाटा एकत्रीकरण की सुविधा होती है। गूगल फेसबुक और एमेज़ोन ऐसे कार्पोरेशन हैंए जिन्होंने अपने करोड़ो उपभोक्ताओं की ब्राऊजिंग प्रवृत्तियों के बारे में वृहद स्तर पर डाटा एकत्रित कर रखे हैं। इन कंपनियों द्वारा उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने के अलावा ये कंपनियां उपभोक्ताओं के इन डाटा को उस देश की सरकार या अन्य ऊंवी बोली पर डाटा खरीदने वाले को बेच देते हैं जिस देश पर ये आधारित हैं।

       निजता पर मंडराता खतरा

  • डाटा का विस्तृत भंडार रखने वाली कंपनियों के साथ यह खतरा बना रहता है कि ये किसी भी समय लोगों की निजता को समाप्त कर सकती हैं। अगर मान लें कि डाटा एकत्र करने वाली कंपनियां ऐसा नहीं भी करेंगीए तब भी विदेशी सरकार या कुछ दुष्प्रवत्ति वाले तत्व ऐसे हो सकते हैं जो किसी राष्ट्र की नीतियों को प्रभावित करने के उद्देश्य से इस डाटा तक गुप्त रूप से पहुँच बना लें। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में रशिया का गोपनीय हस्तक्षेप इसका जीता.जागता उदाहरण है।
  • इसका दूसरा नुकसान किसी राष्ट्र के आर्थिक क्षरण के रूप में हो सकता है।अभी तक बिग डाटा तकनीक वाली कंपनियां विकसित देशों में ही उदित हुई हैं। भारत जैसे विकासशील देश के पास ऐसी तकनीक नहीं है। इससे वे सारे विज्ञापनए जो स्थानीय मीडिया के आय के स्रोत हो सकते थेए विदेशी डाटा कंपनियों को विज्ञापन देकर देश की पूंजी बाहर भेज रहे हैं। ए टी एण्ड टीए वैरीजो एवं केबल नेटवर्क की आय पिछले पाँच वर्षों में समान या घटती हुई रही हैए जबकि गूगल जैसी कंपनियां अंधाधुंध कमा रही हैं।

       दुर्भाग्यवश बिग डाटा तकनीक एक ऐसा शेर है जिसकी सवारी पूरा विश्व कर रहा है। इस नए विश्व में अपनी सुरक्षा के लिए भारत को कुछ कदम उठाने होंगे।

  • चीन ने इस तकनीक के खतरे को भांपते हुए अपने देश में बायद् और अलीबाबा जैसी बड़ी इंटरनेट कंपनियों की शुरूआत कर दी है। गूगल एवं अन्य बाहरी कंपनियों पर अनेक पाबंदिया लगाकर उनके प्रसार को सीमित कर दिया है।
  • भारत चीन की नकल तो नहीं कर सकता, परन्तु अपने अनुकूल वातावरण बना सकता है। इन वृहद् कंपनियों के पास बड़े-बड़े डाटा केन्द्र बनाने की क्षमता होती है। इन बड़े डाटा केन्द्रों को सस्ती जमीन, बिजली आदि उपलब्ध करवाकर हम अपने उद्योगों को अपना डाटा अपनी सीमाओं में रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। संक्षेप में समझें, तो गूगल और एमेज़ोन जैसी बड़ी कंपनियों को भारत में ही बड़े डाटा सेंटर बनाने के लिए इस शर्त पर प्रोत्साहित करें कि वे हमारे डाटा को हमारी भौगोलिक सीमाओं से बाहर नहीं जाने देंगे।
  • दूसरे, बिग डाटा विज्ञान और डाटा सेंटर तकनीक के विकास के लिए देश के ही संस्थानों को तैयार करना होगा। उनका इस प्रकार विकास करना होगा कि वे व्यक्तिगत स्तर पर बिग डाटा तकनीक से उद्घाटन का खतरा कम कर सकें। इसके लिए लोगों को व्यक्त्गित रूप से प्रशिक्षण देना होगा, जिससे वे स्वयं की सरकार एवं अन्य संस्थाओं की निजता को सुरक्षित रख सकें। वे डाटा बैकअप और डाटा इरेज़ प्रोसीजर पर काम कर सकें।

पश्चिमी देशों में ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित होने लगे हैं, जो हमारे ब्राउसिंग पैटर्न को दूसरों की पहुँच से छुपा सकते हैं।सरकार ने ‘डिजीटल इंडिया’ योजना में 2019 तक 2.5 लाख गांवों को इंटरनेट से जोड़ने एवं 2.5 लाख स्कूल, कॉलेज एवं सभी सार्वजनिक स्थानों पर वाई-फाई उपलब्ध कराने का संकल्प ले रखा है। यह अत्यंत प्रशंसनीय है। परन्तु जब तक हम डिजीटल सुरक्षा के लिए पर्याप्त साधन विकसित नहीं कर लेते, हमें ई-उपनिवेशीकरण का खतरा बना रहेगा।

द हिन्दू’ में प्रकाशित हेमंत कनाकिया के लेख पर आधारित।

 

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