कोरोना की समस्या से जिला स्तर पर निपटें

Afeias
22 May 2020
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Date:22-05-20

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हेनरी फोर्ड ने आने वाले बड़े संकटों के लिए कहा था, “कोई समस्याज बड़ी नहीं होती, बल्कि कई छोटी-छोटी समस्याओं से मिलकर बनी होती है’’ भारत के लिए कोरोना के कुल मरीजों की संख्या ज्यादा हो सकती है , परन्तु अगर उन्हें 730 जिलों में बांटकर देखा जाए, तो इनका प्रबंधन आसान दिखाई पड़ता है। भारत को इसी तथ्य को केन्द्र  बिन्दु  बनाकर जिला प्रशासन को ही कार्यवाही के केन्द्र की भूमिका दे देनी चाहिए।

हमें भारत को एक समरूप देश के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह ठीक यूरोपीय देशों की तरह की पद्धति अपनाता दिखाई दे रहा है। केरल, कर्नाटक और गोवा जैसे राज्यों  में कोरोना के मरीज कम ही बने रहेंगे , जबकि बाकी के राज्यों  में बढ़ते रह सकते हैं।

जिलों को जिम्मेकदारी सौंपें

अब, जबकि सार्वजनिक परिवहन की सीमित शुरुआत की जा रही है, और विदेशों में फंसे नागरिकों को भी स्वरदेश लाया जा रहा है, ऐसे में ‘टेस्टर , ट्रैक और क्वारंटाइन’ की रणनीति को अपनाने की आवश्यीकता है। रेल यात्रा प्रारंभ की जा चुकी है। इस स्थिति में जिला प्रशासन ही अपने क्षेत्र में आने वाले नागरिकों का रिकार्ड आसानी से रख सकते हैं। इनकी रिपोर्टिंग के लिए राज्य् स्तर पर एक वॉर रुम जैसा तैयार किया जा सकता है।

कर्नाटक मॉडल की तरह ही कोविड मरीजों के रियल टाइम डेटा को दर्शाने के लिए प्रत्येक जिले की ट्रैकिंग एप बनाई जा सकती है। जिलों को चार पैमाने पर आंका जा सकता है। 1) टेस्टि की संख्या 2) निगेटिव टेस्ट की संख्या 3) मृत्यु 4) क्वावरंटाइन मरीजों का संतुष्टि स्कोर। ये चार पैमाने ऐसे हैं, जिनसे कोरोना मरीजों का जिलेवार सही डेटा मिलने से ही स्थिति संभल सकती है।

टेस्ट , ट्रैक और क्‍वारंटाइन

  • प्रत्येंक जिले को पीसीआर मशीन के साथ दो टेस्टिंग केन्द्र की सुविधा दी जानी चाहिए।
  • टेस्टिंग की संख्याके नियंत्रण के साथ ही जिले को एक मान्यरता प्राप्त लैब से जोड़े रखा जाए।
  • जिले में बाहर से आने वाले नागरिकों का रिकार्ड रखने के साथ ही उनके क्वारंटाइन की भी व्यवस्था की जाए।
  • प्रत्येंक जिले में कोरोना मरीजों के लिए एक अलग 200 बिस्तर वाला अस्पताल उपलब्ध कराया जाए। जिसमें आईसीयू और वेंटीलेटर की भी सुविधा हो।

जिला प्रशासन भी सफलता तभी प्राप्त  कर सकता है, जब उसके समस्त  नागरिक स्वास्थ्य एवं सफाईकर्मियों के साथ सहयोग करें। बड़े क्षेत्रों में लॉकडाउन की स्थिति से लोगों में आक्रोश और असंतोष का भाव आ सकता है। कुछ सौ मीटर के हॉटस्पॉट को पहचानकर उसे सील करने की स्थिति में ऐसा नहीं होगा। यह काम स्थानीय प्रशासन ही सुचारू रूप से कर सकता है। अतरू जिला प्रशासन को मोटे तौर पर दिशानिर्देश देते हुए स्थानीय स्थितियों के अनुसार रणनीति तय करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। राजस्थान के भीलवाड़ा की तरह ही अन्य सशक्ता जिला प्रशासन भी सफलता की कड़ी में जुड़ सकते हैं।

‘द टाइम्स‍ ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित देवी शेट़टी और किरण मजूमदार शॉ के लेख पर आधारित। 11 मई 2020 

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