बड़े सुधारों का सही समय

Afeias
26 May 2020
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Date:26-05-20

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1991 के महती सुधारों के बाद से लेकर अब गुजरात, मध्य्प्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकारों ने श्रम बाजार के अनेक कानूनों को समाप्त करके सुधारों के दूसरे दौर को अंजाम दिया है। इससे उद्योगों को बहुत ढील मिल गई है। लालफीताशाही और इंस्पेक्टंर राज की बाधाएं हटने से अर्थव्य्वस्था को लाभ होने की पूरी संभावना है।

अभी तक की स्थिति

अब तक भारत के श्रम कानून को दुनिया के अनेक देशों की तुलना में कठोर माना जाता रहा है। इसके चलते बड़े निवेश, उत्पादकता और वृध्दि, तकनीकी क्षमता का अवशोषण तथा रोजगार के अधिक अवसरों की उपलब्धता पर लगातार प्रभाव पड़ता रहा है। यही मुख्यत कारण रहा कि हमारे उद्यम छोटे स्तर और छोटे आकार के रहे, और इनके माध्यम से अनौपचारिक रोजगार के अवसर ही बढ़ पाए।

वर्तमान में आ रही प्रवासी मजदूरों की समस्याऔ भी पुराने श्रम कानूनों की ही देन है, क्योंकि ये कानून श्रमिकों की रक्षा तो करते हैं, परन्तु उनकी नौकरियां नहीं बचा पाते।

अनेक अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि इन कानूनों के व्यवधान से अर्थव्य्वस्था के बदलते परिदृश्य  में हमारे उद्योग टिक नहीं पाते हैं।

नए प्रयास से संबंधित कुछ बिन्दु –   

  • न्यूनतम वेतन, काम के घंटे तथा सुरक्षा से जुड़े सभी मानकों को यथावत रखा गया है।
  • बाल श्रम कानून और बेगारी से जुड़े कानूनों में भी कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
  • गुजरात के स्पेशल इकॉनॉमिक ज़ोन की तरह ही हटाए गए श्रमिकों को 45 दिन प्रतिवर्ष के काम के हिसाब से भुगतान किया जाएगा।
  • कृषि क्षेत्र में सर्वप्रथम पंजाब राज्या ने कृषि उत्पातद विपणन समिति अधिनियम और नियम में राज्य् के एकाधिकार को समाप्त करते हुए निजी बाजारों को छूट दे दी है। साथ ही मंडी से बाहर कृषक और उपभोक्ता के बीच के आदान-प्रदान को भी छूट दे दी है।

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश ने भी इसी नीति का अनुसरण किया है। वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज को ही मंडी का दर्जा देकर सीधे वहीं से फल-सब्जी के विक्रय की छूट दे दी है। कृषि उत्पाद संगठनों को सीधे ई-नाम से क्रय-विक्रय की छूट दे दी गई है। इससे किसानों और बाजारों के बीच मध्यस्थ की भूमिका समाप्त हो सकेगी।

क्या किया जा सकता है ?

  • कांट्रेक्ट कृषि के जरिए छोटी जोत वाले किसानों को मदद दी जा सकती है। राज्यों को चाहिए कि 2018 के मॉडल फार्मिंग एक्ट को कार्यान्वित करके किसानों के लिए तकनीक बीज खाद एवं बाजारों के खतरों पर काम करे। कृषि भूमि पट्टा अधिनियम को भी लागू किया जाए।
  • भूमि अधिकार पर तत्परता से काम किया जाना चाहिए। यू.के. , न्यूजीलैण्ड , सिंगापुर और आस्ट्रेलिया आदि ने भूमि पर संभावित अधिकार न देकर निश्चित अधिकार देना शुरू कर दिया है। इससे भूमि की उत्पादकता पर बहुत प्रभाव पड़ा है।
  • राष्ट्रीय स्तिर पर एक राष्ट्र एक राशन कार्ड कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। इससे प्रवासी मजदूरों को भारत के किसी भी स्थान की राशन दुकान से सामान मिल सकेगा।
  • विद्युत क्षेत्र में स्मार्ट मीटरिंग, डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के जरिए सब्सिडी , सब-लाइसेंसिंग और फ्रेंचाइज के जरिए डिस्कॉम का निजीकरण आदि पर काम करने की आवश्यकता है। ‍

प्रत्येक विपदा एक अवसर लेकर आती है। भारतीय राज्यों को भी बड़े सशक्त बुनियादी सुधारों के लिए अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 12 मई 2020

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