भूमि बाजार कानून को सुगम बनाया जाए

Afeias
21 May 2020
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Date:21-05-20

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उत्पादकता के सभी क्षेत्रों की बात करें, तो भारत में भूमि के बाजार का स्वोरूप बहुत विकृत है। इसमें आई भारी अनियमितताओं का कारण ऐसे कानूनों का न होना है, जो हमारी बदलती अर्थव्यसवस्था की जरूरतों को पूरा कर सकें। इस कमी को दूर करने के लिए कर्नाटक राज्य सरकार ने भूमि सुधार संशोधन कानून पारित किया है, जो किसानों और कर्मों को सीधे उद्योगों को भूमि बेचने की छूट देता है। इस संशोधन कानून से निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा।

किसानों और फर्मों के लिए भूमि लंबी अवधि के कोलेटरल के रूप में स्थान रखती है। अतरू भूमि का बाजार ही क्रेडिट मार्केट को भरा पूरा रखता है। परन्तु पुराने कानूनों के अवरोध और अस्त-व्यास्त  अधिकार पंजीकरण तंत्र के चलते ऐसा हो नहीं पाता था। भूमि के उपलब्ध होते हुए भी लगातार भूमि की कमी बनी रहती थी।

  • संशोधन कानून के माध्य से किसान और फर्म अपनी भूमि का सौदा सीधे तौर पर अच्छे दामों में कर सकेंगे।
  • भूमि लेन-देन के मामलों में भूमि के उपयोग में परिवर्तन की अनुमति को सरल बनाया जा सकेगा। इसके चलते किसान अपनी भूमि को आसानी से बेच सकेंगे।

भारत में भूमि राज्य से संबंधित विषय है। अत: इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन उनकी इच्छा  से ही हो सकता है। इसके लिए राज्यों में निवेश को आकर्षित करने के लिए की जा रही प्रतिस्पर्ध्दा , उत्प्रेरक का काम करती है। भूमि बाजार को छूट देने के लिए राज्यी बहुत कुछ कर सकते हैं।

  • भूमि बाजार को सुचारू रूप से चलाने के लिए भूमि की अधिकार (टाइटलिंग) प्रक्रिया को स्पाष्ट बनाना होगा। अभी टाइटलिंग के लिए ऐसे विभागों द्वारा प्रमाण मांगा जाता है , जो आपस में तालमेल नहीं रखते। अनेक स्तर की कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। अगर इन व्यवधानों को हटा दिया जाए, तो सम्पमत्ति का सही लाभ उठाया जा सकता है।
  • इससे राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर भी लाभ प्राप्त किए जा सकेंगे। इसके बाद भूमि अधिग्रहण कानून की आवश्याकता नहीं रह जाएगी।
  • इससे क्रेडिट बाजार को भी उछाल मिलेगा।

देश में एक आधुनिक राष्ट्री य भूमि रिकार्ड योजना बनाए हुए दशकों से भी ज्यादा का समय बीत चुका है। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह राज्यों  को ऐसे संसाधन उपलब्ध कराये कि वे भूमि बाजार को व्यवधान-मुक्त बनाकर अधिक-से-अधिक निवेश को आकर्षित कर सकें।

संपादकीय पर आधारित।

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