कुपोषण से निपटने के लिए तीन वर्षीय योजना
Date:23-04-18 To Download Click Here.
मातृत्व एवं बाल कुपोषण भारत की एक बड़ी समस्या है। हाल ही के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के 38.4 प्रतिशत बच्चों का उम्र के अनुसार विकास कम है, 35.7 प्रतिशत बच्चे अपेक्षित वजन से कम हैं, और 21 प्रतिशत बच्चों का वजन लम्बाई के हिसाब से कम है। यही स्थिति महिलाओं के संदर्भ में भी कही जा सकती है। 15-40 वर्ष के बीच की 53 प्रतिशत महिलाएं रक्ताल्पता से पीड़ित हैं, और 22.9 प्रतिशत का उम्र और लम्बाई के अनुसार वजन कम है। माँ के कुपोषित होने का सीधा प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। इस प्रकार कुपोषण का अंतहीन चक्र चलता जा रहा है।
कुपोषण-संक्रमण-रोग-मृत्यु के चक्र के चलते पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में से बहुतों का जीवन समाप्त हो जाता है। कुपोषण के कारण बच्चों में सीखने-समझने की शक्ति भी कम रहती है। यही बच्चे वयस्क होकर उत्पादकता के स्तर में पिछड़ जाते हैं।
यूं तो राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरूआत 2003 में ही हो गई थी। परन्तु इस पर सक्रिय रूप से कोई काम नहीं किया गया। प्रधानमंत्री ने 8 मार्च को कुपोषण से निपटने के लिए तीन वर्षीय जन आंदोलन की शुरूआत की है।
- खान-पान के स्तर में अकेले वृद्धि किए जाने से पोषण के स्तर को सुधारा नहीं जा सकता। इसके लिए स्वच्छता, शुद्ध पेयजल एवं संक्रमण से निपटने के तरीके भी इस्तेमाल में लाने होंगे।
- इन प्रयासों को निचले स्तर तक पहुँचाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की अहम् भूमिका हो सकती है। फिलहाल देश में ऐसे कार्यकर्ता और उनके सहायकों की बहुत कमी है।
- इसके अगले स्तर को सुपरवाइजर और बाल विकास योजना अधिकारी संभालते हैं। परन्तु अभी इनके अनेक पद रिक्त पड़े हुए हैं।
- गांवों या निचले इलाकों में बने आँगनबाड़ियों के पास इस मिशन पर काम करने के लिए सुविधाओं का घोर अभाव है। वे अधिकतर किराए की जगहों पर काम कर रहे हैं। कई जगह तो स्वच्छता का भी अभाव है।
- सरकार के तीन वर्षीय कार्यक्रम की शुरूआत 2017-18 में 315 जिलों को केन्द्रित कर की गई है, जिसे 2019-20 में पूरा होना है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अपनी तैयारी में जुटा है। राज्यों को धन मुहैया कराया जा रहा है। मिशन के कार्य एवं विकास पर नजर रखने के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया जा चुका है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सुपरवाइजर को स्मार्ट फोन और टेबलेट दिए जा चुके हैं। उम्मीद है कि सरकार के इन युद्ध स्तरीय प्रयासों से हम कुपोषण से जुड़ी समस्याओं से संबंधित लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित सज्जन सिंह यादव के लेख पर आधारित।