कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
Date:30-10-17
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- भारत में सामान्य से कम वजन वाले बच्चों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। पिछले वर्ष इनकी संख्या 9.7 करोड़ थी।
- भारत में सामान्य से कम वजन वाले पांच से 19 वर्ष के बच्चों और युवाओं की संख्या भले ही चार दशक में सर्वाधिक हो, लेकिन इसमें कमी भी दर्ज की गई है।
- जहाँ विश्व में मोटापे के शिकार होते बढ़ते बच्चों की संख्या पर चिंता व्क्त की जा रही है, वहीं भारत में कुपोषण का शिकार होने वाले बच्चे चिंता का कारण हैं। हांलाकि देश के बच्चों का बॉडी मास इंडेक्स बढ़ा है। लेकिन बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह अभी भी चिंताजनक स्थिति में है।
- चिकित्सकों के अनुसार शहरी क्षेत्र के बच्चों में जंक फूड खाने के कारण मोटापे की समस्या बढ़ रही है। इससे बच्चों में आगे चलकर डायबिटीज और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।
- वल्र्ड ओबेसिटी फेडरेशन ने ऐसा अनुमान लगाया है कि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में मोटापे की बीमारी इस तेजी से बढ़ रही है कि 2025 तक कुपोषित बच्चों की तुलना में मोटे बच्चों की संख्या अधिक हो जाएगी।
- फेडरेशन के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अलग-अलग देशों की सरकारों से अपील की है कि वे अपने यहाँ स्वास्थ्य सेवा में काम करने वाले लोगों को इस समस्या से निपटने की जानकारी दें। उपचार में निवेश, समस्या का जल्द से जल्द पता लगाना एवं इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाकर 2025 तक मोटापे पर नियंत्रण के विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इससे असंक्रामक रोगों से होने वाली 25 प्रतिशत मौतों को कम किया जा सकता है।
- वैश्विक भुखमरी इंडेक्स में भारत का यह स्थान दर्शाता है कि भारत भरपेट भोजन न मिलने, वजन के हिसाब से ऊँचाई कम होने, वजन कम होने और शिशु मृत्यु दर अधिक होने के मामले में बहुत गंभीर स्थिति में पहुंच गया है।
- भारत का हंगर इंडेक्स 31.3 है, जो गंभीर स्थिति को पार कर चिंताजनक सिथति के करीब है। जबकि चीन का 7 है, जो मुखमरी के मामले में सामान्य स्थिति को दर्शाता है।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक के अनुसार भारत की 68.5 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है। भारत में प्रतिवर्ष 5 वर्ष से कम आयु के दस लाख बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते हैं। गर्भ धारण करने वाली हर दो माताओं में से एक कुपोषण के कारण रक्ताल्पता से ग्रस्त होती है।
- करीब डेढ़ दशक से भारत की जीडीपी दर ऊँची रहने के बावजूद बढ़ती भुखमरी इस बात की ओर संकेत करती है कि आर्थिक विकास का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के अनुसार देश के कुल जमा धन का आधे से ज्यादा हिस्सा एक प्रतिशत आबादी के पास है।
- स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी देश का हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। आज भी देश के 19 करोड़ लोग यानी 14.5 आबादी कुपोषण का शिकार है। भारत में प्रतिदिन तीन हजार बच्चे कुपोषण के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं।
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 23 करोड़ टन दालें, 12 करोउ़ टन फल व 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली की कमियों के कारण बर्बाद हो जाती हैं।
- उत्सव, समारोह, शादी-विवाह आदि में बड़ी मात्रा में पका हुआ भोजन बर्बाद कर दिया जाता है।
- लाखों टन अनाज प्रतिवर्ष भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में सड़ जाता है।
- कुपोषण पर विजय प्राप्त करके सकल घरेलू उत्पाद को दो से तीन प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
- कुपोषण के कारण महिलाओं और बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे महिलाओं में खून की कमी, घेंघा रोग तथा को सूखा रोग एवं रतौंधी होने का खतरा बना रहता है। इन सबके कारण भारत की आय में नौ-दस प्रतिशत की कमी उठानी पड़ रही है।
इन सबके पीछे भ्रष्टाचार, योजनाओं के क्रियान्वयन की खामियां और गरीबों के प्रति सरकार की संवेदनहीनता जैसे कारण प्रमुख हैं। अमीर-गरीब के बीच की खाई को कम किया जाए और सबको जीने के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
समाचार पत्रों पर आधारित।
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