बिखरे-बिखरे कुछ ठोस तथ्य

Afeias
06 Jan 2020
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Date:06-01-20

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  • गरीबी और कुपोषण के चलते दुनिया के नौ करोड़ किसानों के बच्चे बौने कद के रह जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया के 60 फीसदी से अधिक छोटे किसान प्रभावित होंगे। ऐसे में कृषि सांख्यिकी के सहारे सटीक आंकड़े जुटाने की जरूरत है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। अतः सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में एक है। फसलों की उत्पादकता के लिए उन्नत बीजों पर दोगुना निवेश करने की जरूरत है।

छोटे किसानों की आजीविका के लिए पशुधन व डेयरी को बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे उनकी आय में 20 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हो सकती है।

  • 2001 से 2016 के बीच दुनिया के 146 देशों के 11 से 17 वर्ष के 16 लाख किशोरों पर किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि विश्व स्तर पर 18 प्रतिशत किशोर शारीरिक रूप से निष्क्रिय हैं। इनमें 85 प्रतिशत लड़के और 78 प्रतिशत लड़कियां हैं।

सबसे सक्रिय किशोरों वाले देश में भारत सातवें स्थान पर है। बच्चों की शारीरिक निष्क्रियता का दुष्प्रभाव उनमें मोटापे की समस्या के रूप में सामने आ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 11 से 17 साल के किशोरों को रोज कम-से-कम एक घंटे शारीरिक व्यायाम जरूरी है। परन्तु मात्र 19 प्रतिशत बच्चे ही इस मानक को पूरा करते हैं।

  • भारत में पेयजल की स्थिति भयावह है। यहाँ भूजल का जितना दोहन किया जाता है, उसका आठ प्रतिशत ही पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भारत का अधिकांश भूजल अभी भी पीने लायक है, लेकिन देश में कृषि की सिंचाई पर यह 60 प्रतिशत खर्च हो जाता है। उद्योगों द्वारा भी इसका दुरूपयोग किया जा रहा है।

घरों में इस्तेमाल होने वाला 80 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है। इजरायल और आस्ट्रेलिया में ऐसा नहीं है। इजरायल तो घर में इस्तेमाल होने वाले पानी के 94 प्रतिशत को रिसाइकिल करता है।

पेयजल शुद्धिकरण और इसका वितरण प्रबंधन कामचलाऊ और अनौपचारिक प्रशिक्षण द्वारा पुरानी तकनीक से किया जा रहा है।

पानी से संबंधित तकनीक के लिए कनाड़ा दुनिया का अग्रणी देश है। यहाँ से सहायता लेकर नगरपालिकाओं और जल विभाग के अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा सकता है।

एक कार्यदल का गठन किया जाए, जिसका काम एक पाठ्यक्रम तैयार करना हो। कौशल विकास प्रशिक्षण के बाद समय-समय पर ऑडिट करके पारदर्शिता के साथ सूचना को वेबसाइट पर डालने की जिम्मेदारी भी कार्यदल की हो। अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।

मिड डे मील के साथ नाश्ता भी

  • आने वाले बजट में सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्यान्ह भोजन के अलावा सुबह का नाश्ता देने का प्रस्ताव प्रमुखता से रखा गया है। यह इसलिए क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में बच्चे बिना नाश्ता किए पढ़ने चले आते हैं।

दूसरी तरफ, स्कूलों में खाना बनाने का काम शिक्षकों से लेकर स्वयंसेवी संस्थाओं दिया जा रहा है। मिड डे मील की जिम्मेदारी होने के कारण शिक्षक बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे में स्कूलों का लर्निंग आउटकम लगातार बिगड़ रहा है।

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