किसान सम्मान निधि का महत्व
Date:18-03-19 To Download Click Here.
हाल ही में घोषित “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना” के अंतर्गत प्रत्येक सीमांत और गरीब किसान को प्रतिवर्ष 6000 रु. की धनराशि देने की बात कही गई है। विपक्षी राजनीतिक दलों में से बहुतों ने सरकार के इस कदम की यह कहकर आलोचना की है कि इतनी कम राशि का दिया जाना, किसानों के लिए एक तरह से अपमानजनक है।
ज्ञातव्य हो कि यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में सब्सिडी की इतनी ही राशि तय की थी। अगर 2011 में तेंडुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा की बात करें, तो उस पर भी कुछ इसी प्रकार की टिप्पणियां सुनने को मिली थीं।
विपक्षी दलों की आशंकाओं से निपटने के लिए पीएम-किसान योजना के लाभार्थियों के मासिक खर्च के आंकड़ों पर नजर डाली जानी चाहिए। यही प्रत्यक्ष प्रमाण होंगे कि वास्तव में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से उनके जीवन स्तर में कुछ सुधार हो भी पाएगा या नहीं ?
ओड़ीशा, बिहार, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे चार राज्यों के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों को आधार बनाकर सच्चाई को परखा जा सकता है।
- ओड़ीशा में 2017-18 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में किसी घर का मासिक व्यय चार से पाँच हजार के बीच पाया गया। इन परिवारों के लिए 500 रु. प्रतिमाह की सहयोग राशि उनके खर्च का 10-12% वहन कर सकती है।
- अन्य राज्यों में ग्रामीण परिवारों का मासिक व्यय ओड़ीशा से ज्यादा पाया गया। तब भी यह सभी चार राज्यों के सबसे कमजोर आर्थिक स्थिति वाले 30% परिवारों के लिए मासिक खर्च 5.5% तो बनता ही है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और मनरेगा जैसी योजनाओं का उदाहरण लेकर भी नकद हस्तातंरण के महत्व को समझा जा सकता है। मनरेगा में काम के बदले वेतन का प्रावधान है। योजना के अंतर्गत काम की कोई गारंटी नहीं होती।
गेहूँ और चावल के खुदरा मूल्य के हिसाब से खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत 2017-18 में मिलने वाली सब्सिडी 440 रु. प्रतिमाह, प्रति परिवार बैठती है। मनरेगा को होने वाली मासिक आय उत्तरप्रदेश में 496 रु. तो महाराष्ट्र में 814 रु. आंकी गई है। चारों राज्यों के सबसे गरीब 30% लोगों को इन तीनों योजनाओं को मिलाकर मिलने वाली सहायता का औसत 18.6% प्रति परिवार आता है। सबसे नीचे तब के 10% गरीब लोगों के लिए यह सहायता 25% से 37.6% तक कही जा सकती है।
- इस लेख में सहायता राशि का गणित तीन प्रमुख योजनाओं को मिलाकर लगाया गया है। इसके अलावा यदि ग्रामीण आवास योजना, ग्रामीण विद्युतीकरण, उज्जवला योजना, फसल बीमा, निःशुल्क शिक्षा आयुष्मान भारत आदि को जोड़ लिया जाए, तो इनके माध्यम से मिलने वाली सब्सिडी के साथ पीएम-किसान योजना की सहयोग राशि अवश्य ही राहत पहुँचाने वाली कही जा सकती है। राज्य सरकारें भी अपनी ओर से कुछ हस्तातंरण करती ही हैं।
गरीब किसानों में भी सबसे निचले 30% के लिए चलाई गई सम्मान निधि योजना निःसंदेह लाभदायक है। तेलंगाना सरकार की रायथु बंधु योजना को भी अगर छोटे और सीमांत किसानों तक सीमित कर दिया जाए, तो इससे गरीबों को अधिक लाभ पहुँच सकेगा।
अगर सम्मान निधि के बाद भी गरीब ग्रामीणों की हालत असंतोषजनक रहती है, तो इसका कारण उनकी आय का कम होना है। इसके लिए इस प्रकार से आर्थिक विकास करना होगा कि गरीबों को रोजगार मिल सके।
‘द इकानॉमिक टाइम्स‘ में प्रकाशित अरविंद पनगढ़िया और अतिशा कुमार के लेख पर आधारित। 27 फरवरी, 2019