
किसान उत्पादक संघों की स्थिति
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सरकार ने 2020 में 10 हजार किसान उत्पादक संगठन बनाने की योजना शुरू की थी। बिहार के खगड़िया में 24 फरवरी को इस योजना के तहत 10,000वां एफपीओ बना। पहले बने एफपीओ और इस योजना के तहत बने एफपीओ की संख्या अगर मिला ली जाए, तो ग्रामीण कारोबारी उद्यमों की संख्या 44,000 से ज्यादा है। इन संगठनों से करीब 30 लाख किसान जुड़े हैं, जिसमें 40% महिलाएँ हैं।
कुछ एफपीओ एक करोड़ के ऊपर का कारोबार कर रहे हैं। इसीलिए इन्हें दूसरे क्षेत्रों के स्टार्टअप में यूनिकार्न के बराबर माना जा सकता है।
एफपीओ को बढ़ावा देने की सरकारी योजना के तहत 3 साल में 18 लाख रुपये तक वित्तीय मदद, 200 रु. प्रति सदस्य तक इक्विटी फंड और चुनिंदा संस्थानों से परियोजना ऋण के लिए ऋण गारंटी दी जाती है।
किसान उत्पादक संघ के कार्य –
- कुछ एफपीओ, एफपीसी (किसान उत्पादक कंपनी) भी कहलाते हैं। एफपीओ बनाने का उद्देश्य बड़े स्तर पर उत्पादन के द्वारा सदस्य-किसानों की आय और मोलभाव की शक्ति को बढ़ाना है।
- ये संगठन कृषि में प्रयोग होने वाले समान को सस्ते में खरीदते हैं। इससे बेचने पर बेहतर भाव भी मिल जाता है। इसीलिए ये संगठन पशुपालन, मत्स्य-पालन और अन्य ग्रामीण व्यवसायों से भी जुड़े हैं।
- ये संगठन सहकारी भावना के बावजूद निजी कंपनी की तरह कार्य करते हैं। कंपनी अधिनियम को 2013 में संशोधित कर एफपीओ को ‘उत्पादक कंपनी‘ की तरह गठित करने का प्रावधान शामिल किया गया, जिससे किसान अपनी उपज को सामूहिक रूप से बेच सकें।
- ये उपक्रम तकनीकि मदद एवं प्रशिक्षण देकर तथा वित्त व ऋण उपलब्ध कराकर अपने सदस्यों के कारोबारी उपक्रम के लाभ कमाने की क्षमता बढ़ाते हैं।
- वे अपने सदस्यों को कच्चा माल उपलब्ध कराने वालों, उत्पाद खरीदने वालों एवं अन्य दूसरे कृषि कारोबारी से सीधे जोड़ते हैं।
- ढुलाई खर्च कम करने के लिए लाजिस्टिक सुविधाएँ भी सुधारते हैं।
- किसानों को अपनी जानकारी, उपकरण या खुद बनाए बीज एक जगह उपलब्ध कराते हैं, जिससे कृषि की कुशलता बढ़ती है।
- ये मशीन से होने वाली खेती को बढ़ावा देते हैं, तथा मशीन के सामूहिक रूप से प्रयोग पर बल देते है।
इन सभी प्रयासों से किसानों का लाभ बढ़ता है और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति अच्छी होती है।
एफपीओ की चुनौतियां –
- व्यापार के लिए पर्याप्त राशि जुटाना एक समस्या है। एफपीओ की कम संपत्ति के कारण इन्हें ऋण नहीं मिलता तथा कृषक भी छोटे जोत के होते है। इसीलिए ये इक्विटी भी नहीं जुटा पाते।
- इनमें पेशेवर योग्यता व प्रबंधन कौशल की कमी भी इनमें होती है। संसाधनों की कमी के कारण वे अकाउंटिग, कानूनी काम संभालने वाले पेशेवर और अनुभवी कर्मचारी नहीं रख पाते।
- कारोबार की उन्नति व विस्तार के लिए कारगर रणनीतियां भी नहीं बना पाते।
- व्यवसायिक आपदाओं से निपटने एवं जोखिम घटाने और उत्पादन एवं वित्तीय नुकसान से अपनी सुरक्षा करने के रास्ते भी उनके पास नही होते।
आगे की राह –
- एफपीओ को पेशेवर तरीके से कारोबारी मॉडल की जरूरत है, जिसमें प्रसंस्करण, पैकेजिंग और गुणवत्ता सुधार सहित विभिन्न तरीकों से लाभ बढ़ाने की कोशिश हो।
- एफपीओ संभालने वालों का नेतृत्व और प्रशासनिक कौशल सुधारकर क्षमता बढ़ाने की जरूरत है।
- उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण, ब्रांडिंग, उत्पाद के प्रचार तथा मार्केटिंग में डिजिटल तकनीकों के इस्तेमाल की जरूरत है।
- एफपीओ की संख्या 10,000 से अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
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