किसान रैली के मायने

Afeias
13 Apr 2018
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Date:13-04-18

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हाल ही में किसानों की एक रैली लगभग 200 कि.मी. यात्रा करके दांडी मार्च की सालगिरह को मुंबई पहुँची। किसानों की यह लंबी पदयात्रा शांतिपूर्ण, अनुशासित और पूर्ण अहिंसक थी। जनता के हर वर्ग के साथ-साथ, इसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हुआ।

हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पहले ही उनकी मांगों से सहमत थे, और उनको इस प्रकार की रैली की अनावश्यकता को समझाने का प्रयत्न करते रहे। क्या कारण था कि इसके बावजूद इतनी बड़ी संख्या में किसानों ने ऐसी रैली निकालने का संकल्प लिया?

पिछले कुछ समय से किसान अपनी मांगों को लेकर बार-बार आंदोलन कर रहे हैं। हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन तो असंतोष से भरे हिंसक आंदोलन भी रहे हैं। इसके पीछे  कारण यही है कि भारत में कृषि से जुड़ी समस्याएं अनंत हैं। परन्तु इन सबके समाधान भी हैं।

  • सर्वप्रथम, हमें जीविका के लिए कृषि पर निर्भर रहने वाली श्रमशक्ति को अन्य विकल्पों की ओर मोड़ना होगा। इसके लिए औद्योगिक विकास और “ईज़ ऑफ डुईंग बिजनेस” को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • कृषि को व्यापार की तरह का कर्म मानते हुए उसे अपनी ही शर्तों पर व्यवहार्य बनाना होगा। अभी तक उद्योगों में वेतन कम रखने के उद्देश्य से कृषि उत्पादों का मूल्य कम रखा जाता है। किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार उन्हें अनेक तरह की सब्सिड़ी देती रही है। इससे किसानों का कुछ भी भला नहीं हुआ है। साल-दर-साल किसानों के नुकसान की भरपाई की प्रक्रिया जटिल होती गई है।
  • आज भी कृषि व्यवसाय में खरीद के नियम और कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) का बोलबाला है। किसानों और खरीददारों के बीच के अंतर्संबंध में बहुत धीमी प्रगति हुई है। इसे बढ़ाया जाना चाहिए।
  • कृषि उत्पादों की पूरी श्रृंखला में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रतिबंधित है।
  • आधे किसान तो काश्तदार हैं। इन्हें ऋण लेने में बहुत कठिनाई होती है। अधिकांशतः ऋण मिल ही नहीं पाता।
  • अनुबंधित कृषि पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
  • पट्टे पर भूमि नहीं दी जा सकती। अनौपचारिक रूप से यह प्रचलन में है।
  • किसानों पर मौसम, कीट, मूल्यों, मांग एवं नीतियों तथा नियमन में आए दिन होने वाले बदलावों की मार पड़ती रहती है। ऐसे ही किसानों के लिए ऋण माफी सरकार का नैतिक कत्र्तव्य बन जाता है।
  • आर्थिक दृष्टि से ऋण माफी की नीति उचित कदम नहीं है परन्तु सरकार पर चुनाव जीतने का दबाव बना रहता है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि कर रही है। परन्तु एक ही फसल अलग-अलग क्षेत्रों के मौसम और संसाधनों की उपलब्धता के कारण अलग-अलग मूल्य की मांग करती है।

किसानों के असंतोष को दूर करने के लिए सरकार ने अनेक प्रयास किए हैं। नीम कोटेड खाद, मृदा-कार्ड की शुरुआत के साथ सरकार ने कृषक-खरीददार के बीच डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर की मदद से सब्सिडी कम करने का प्रयत्न किया है।

राष्ट्रीय कृषक आयोग के प्रमुख स्वामीनाथन ने किसानों के हित के लिए अनुक योजनाओं की सिफारिश की थी। इनमें से कुछ ही को लागू किया गया है। अभी जिला स्तर पर अनाज बैंकों की स्थापना और निचले स्तर पर अनाज की खरीद को संभव बनाने के अलावा कई ऐसी नीतियां हैं, जिन्हें लागू किया जाना चाहिए।

सरकार के मौखिक वायदों के साथ, किसान अब कार्य रूप में उनकी परिणति चाहते हैं। यही कारण है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद उन्होंने इतना कष्ट उठाकर लंबी यात्रा की, जिससे वे सरकार से एक पक्का लिखित और सार्वजनिक रूप से दिखाई देने वाला वचन प्राप्त कर सकें।

‘द हिन्दू’ में अजित रानाडे के लेख पर आधारित।