इंटरनेट अधिकारों की गारंटी

Afeias
16 Jan 2020
A+ A-

Date:16-01-20

To Download Click Here.

2019 में भारत के कई क्षेत्रों में सरकार द्वारा इंटरनेट सेवाओं को समय-समय पर स्थगित किया गया। अगस्त में धारा 370 के निरस्तीकरण के साथ ही कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं को निरस्त कर दिया गया था। इसी प्रकार से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान लगभग पूरे देश में इंटरनेट सेवाएं बाधित रहीं या स्थगित रहीं।

इस प्रकार का स्थगन धारा 144 या भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 5(2) के अंतर्गत किया गया था। कुछ के पीछे कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं था।

इंटरनेट की सुलभता : एक मौलिक अधिकार

इंटरनेट ब्राडबैंड और मोबाईल इंटरनेट सेवाएं आज भारत के लोगों की जीवन-रेखा बन चुकी है। यह न केवल सूचनाएं प्राप्त करने और सोशल मीडिया के साथ-साथ संचार का साधन है, बल्कि उससे भी अधिक बड़ी सहायक है। यही वह सही समय है, जब इंटरनेट सेवा के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए।

तकनीक आधारित गिग अर्थव्यवस्था में काम करने वाले सैकड़ों लोगों की आजीविका आज इंटरनेट पर ही टिकी हुई है। यह उन हजारों विद्यार्थियों के भविष्य का निर्धारक है, जो ऑनलाइन कोर्स करते हैं एवं परीक्षाएं देते हैं। अतः यह शिक्षा के अधिकार की सुविधा के प्रचार के लिए भी महत्वपूर्ण है।

इंटरनेट के माध्यम से गांव और शहरों के अनेक लोगों को समय पर यथोचित परिवहन सुविधाएं मिल रही हैं। इसके माध्यम से लोग स्वास्थ्य परामर्श प्राप्त करने में सक्षम हैं। लाखों छोटे व्यापारियों के लिए इंटरनेट उनका सर्वस्व है, क्योंकि वे इसके माध्यम से ही अपनी वस्तुएं व सेवाएं बेच पा रहे हैं। खासतौर पर महिलाओं और गृह उद्योग चलाने वाले महिला-समूहों के लिए इंटरनेट का बहुत उपयोग है।

अधिकार क्यों माना जाए?

इंटरनेट की सुलभता को अधिकार मानने का मामला, निजता के अधिकार के संबंध में दिए गए न्यायाधीश पुट्टास्वामी के निर्णय के समकक्ष लगता है। यह लगभग सभी मौलिक अधिकारों की सुलभता को सुनिश्चित करता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा पत्र के अनुच्छेद 19 में प्रत्येक को अभिव्यक्ति और सम्मति देने के अधिकार में इंटरनेट की सुलभता को अधिकार माने जाने का तर्क मिलता है। इस अधिकार में बिना किसी प्रकार के पहरेदारों के, मीडिया के माध्यम से सूचना और विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकता है।

जुलाई, 2018 को संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी मानवाधिकार परिषद् ने इंटरनेट के प्रसार, सुरक्षा और मनोरंजन के संबंध में अनेक देशों द्वारा लगाई जा रही पाबंदियों पर चिंता व्यक्त की है। इस प्रस्ताव में पुष्टि की गई कि लोगों को जो अधिकार ऑफलाइन दिए जाते हैं, वे ऑनलाइन भी दिए जाएं।

केरल में पहल –

फहिमा शीरीन बनाम केरल राज्य बनाम अन्य के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इंटरनेट की सुलभता को अधिकार मानने की पहल की है। इस मामले में न्यायालय ने इसे विद्यार्थियों के लिए एक आवश्यक साधन बताया। यह भी कहा कि इसके अभाव में महिलाओं, लड़कियों एवं वंचित वर्ग को बहुत सी असुविधाएं होती हैं।

इन सब पहलुओं पर विचार करते हुए इंटरनेट को संवैधानिक गारंटी के साथ दिया जाने वाला मौलिक अधिकार मानने की सिफारिश की जानी चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित जायना कोठारी के लेख पर आधारित। 31 दिसम्बर, 2019