आखिर सरकार क्रीमीलियर के आरक्षण पर पुनर्विचार क्यों चाहती है ?

Afeias
20 Dec 2019
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Date:20-12-19

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सरकारी पदों में पदोन्नति पर अनुसूचित जाति / जनजाति में क्रीमीलेयर को दिए जाने वाले आरक्षण पर लंबे समय से विवाद चल रहा है। हाल ही में केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से इस मामले को सात सदस्यीय पीठ को सौंपने का आग्रह किया है, जो यह बता सके कि आरक्षण दिया जाना है या नहीं ?

जानें क्रीमीलेयर क्या है ?

इस अवधारणा का सबसे पहला प्रयोग 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने मील का पत्थर साबित होने वाले अपने एक निर्णय में किया था। इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में पिछड़े वर्ग में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से सम्पन्न लोगों को ‘क्रीमीलेयर’ का नाम दिया गया था। पिछड़े वर्ग के ये सम्पन्न लोग, किसी भी अन्य सम्पन्न वर्ग के बराबर ही थे। ये सम्पन्न लोग, इस वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण के सभी लाभ उठाकर वास्तव में पिछड़े लोगों तक इन्हें पहुँचने नहीं दे रहे थे।

इंदिरा साहनी मामले में न्यायालय ने मंडल कमीशन की सिफारिश के अनुसार अन्य पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर सहमति जताई थी। साथ ही कहा था कि सभी पिछड़े वर्गों में से क्रीमीलेयर को इस परिधि से हटाया जा सकता है, और हटाया भी जाना चाहिए।

क्रीमीलेयर की अवधारणा में अनुसूचित जाति / जनजाति का समावेश

न्यायालय ने इंदिरा साहनी निर्णय में आरक्षण का लाभ सरकारी सेवाओं में प्रवेश के लिए दिया था, पदोन्नति के लिए नहीं। केन्द्र ने 1995 में 77वें संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 16(4ए) जोड़ दिया। इसके अनुसार अनुसूचित जाति / जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ यह बताकर दिया गया कि राज्य सेवाओं में अभी इस वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

अनुच्छेद 16(4बी) के द्वारा रिक्त पदों को भरने के लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को तोड़ दिया गया।

2001 में संवैधानिक संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 335 को विस्तृत करके, अनुसूचित जाति / जनजाति को क्वालीपाइंग अंकों में छूट दी गई।

इन संशोधनों को न्यायालय में चुनौती दी गई। 2006 में नागराज मामले में सार्वजनिक नियुक्तियों में पदोन्नति पर न्यायालय ने तीन शर्तें लगा दीं।

इसी मामले में न्यायालय ने सरकारी पदोन्नति के लिए अनुसूचित जाति / जनजाति वर्ग में भी क्रीमीलेयर वाली अवधारणा को मान्य किया था।

एक अन्य महत्वपूर्ण फैसला

2018 में न्यायालय ने जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में अनूसचित जाति / जनजाति के सम्पन्न लोगों के लिए क्रीमीलेयर की प्रयोज्यता (एपलिकेबिलिटी) को बरकरार रखा था।

सरकार का मानना है कि ‘क्रीमीलेयर’ पिछड़े वर्गों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने का एक कारण बन रहा है। इस संदर्भ में अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा है कि अनुसूचित जाति / जनजाति समुदाय अभी भी सदियों पुराना पिछड़ापन झेल रहा है। अतः न्यायालय को चाहिए कि वह अपने पूर्व निर्णय को पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ को सौंपे।

2018 के निर्णय में कहा गया है कि जब न्यायालय ने नागराज मामले में अनुसूचित जाति / जनजाति के लिए क्रीमीलेयर को लागू किया, तो उसने संविधान की धारा 341 या 342 के तहत राष्ट्रपति की सूची के साथ छेड़छाड़ नहीं की थी।

अतः न्यायालय ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित कृष्णदास राजगोपाल के लेख पर आधारित। 8 दिसम्बर, 2019