अपशिष्ट-निपटान से बेहतर कल की ओर

Afeias
13 Jan 2020
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Date:13-01-20

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आने वाले कल के लिए अपने को तैयार करने हेतु वृत्तीय अर्थव्यवस्था का हाथ पाया जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में ऐसी अर्थव्यवस्था ही साथ दे सकती है, जिसमें संसाधनों का जहाँ तक संभव हो, उपयोग हो सके। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इसी पथ पर चलते हुए राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मसौदा तैयार किया है। मसौदे में प्रमुख संसाधनों की अगले पाँच वर्षों में रिसाइक्लिंग का लक्ष्य रखा गया है।

अन्य देशों की तुलना में भारत की रिसाइक्लिंग दर सबसे अधिक है। भारत में इसके लिए कड़े नियमों और उन्नत तकनीक के अभाव में प्रायः यह असुरक्षित ढंग से प्रोसेस किया जाता है। पाँच क्षेत्र. ऐसे हैं, जिनमें इस प्रक्रिया को सुचारू ढंग से गति प्रदान की जा सकती है।

  • ऑटोमोबाइल अपशिष्ट –

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मिलकर इस प्रकार के कूड़े के लिए दिशानिर्देश बनाए हैं। परन्तु कानूनी ढांचे के अभाव में ऑटोमोबाइल कचरा अनौपचारिक क्षेत्र के माध्यम से निपटाया जाता है। अतः इसके लिए मंत्रालयों के अपने दिशा-निर्देशों पर आधारित व्यापक नियमन ढांचे के निर्माण की आवश्यकता है।

ऑटोमोबाइल की रिसाइक्लिंग को आर्थिक रूप से फायदेमंद और पारदर्शी बनाकर, निजी क्षेत्र को इस ओर आकर्षित किया जा सकता है।

  • ई-वेस्ट – भारत में प्रतिवर्ष 15 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट इकट्ठा होता है। हमारी रिसाइक्लिंग की क्षमता मात्र 20 प्रतिशत वेस्ट का ही निपटान करने की है। इसके लिए रिसाइक्लिंग उद्योग बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। केलीफोर्निया में प्रत्येक कम्प्यूटर सेट की बिक्री पर 5 डॉलर का सरकारी शुल्क लिया गया है। भारत सरकार भी ऐसे कुछ प्रयास कर सकती है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट – प्लास्टिक के कूड़े को एकत्रित करने के लिए बने ढांचे और इसके बाजार के बीच एक दूरी है, जिसके चलते इसकी सही और पूर्ण रिसाइक्लिंग नहीं हो पाती है। कुछ समय से बिटुमेन रोड के निर्माण के लिए बेकार प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। इसके लिए और अधिक उन्नत तकनीक की आवश्यकता है।

सीमेंट प्लांट में संसेचन के लिए हल्के स्तर के बेकार प्लास्टिक, कपड़े और चमड़े का उपयोग किया जा सकता है, परन्तु परिवहन की असुविधाएं हैं।

हमारे देश में प्रतिदिन 25,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। इसके निपटारे के लिए कार्पोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी को भी शामिल किया जाना चाहिए।

  • ऑर्गेनिक अपशिष्ट ठोस कूड़े के रूप में इसका एक बड़ा पहाड़ है। इसके निपटारे के लिए सरकार सब्सिडी भी दे रही है। परन्तु सरकारी तंत्र में इसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
  • निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट – इस हेतु वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 बनाए गए हैं, जिसके अनुसार 100 कि.मी. की परिधि में ही अन्य निर्माण कार्यों के लिए ऐसे अपशिष्ट का उपयोग किया जाना चाहिए। दिल्ली सरकार ने इसके लिए कदम उठाने शुरू भी कर दिए हैं। अन्य राज्य सरकारें भी प्रयास कर सकती हैं।

भारत सरकार को चाहिए कि पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी में वह बड़े-बड़े रिसाइक्लिंग जोन तैयार करे। भूमि खरीद और वैधानिक अनुपालन का काम सरकार देखे, तथा अन्य सुविधाएं, तकनीक आदि जुटाने का काम निजी क्षेत्र को सौंपा जाए। तब जाकर हम, कुछ सीमा तक अपशिष्ट निपटान कर सकेंगे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित राजीव मेमानी के लेख पर आधारित। 26 दिसम्बर, 2019

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