सामूहिक संचलन को रोकना जरूरी है

Afeias
22 Apr 2020
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Date:22-04-20

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देश में लॉकडाउन के साथ ही असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि देश के शहरी क्षेत्र का 60 प्रतिशत कार्यबल अस्थायी और स्व-नियोजित रोजगार में संलग्न है। यही कार्यबल मुंबई और दिल्ली के सड़कों पर विद्रोह स्वरूप या प्रवास के लिए उतरा दिखाई दे रहा है।

ऐसे कामगारों के लिए तुरंत ही कोई राष्ट्रव्यापी योजना बनाए जाने की आवश्यकता है। इस योजना में इन्हें अस्थायी आवास और भोजन की गारंटी दी जानी चाहिए। योजना को कार्यान्वित किए जाने के दो संभव मार्ग हो सकते हैं।

1) जिला प्रशासन अपने स्तर पर शेल्टर होम तैयार करे। जिलों से गुजरने वाले प्रवासी मजदूरों को इसकी सुविधा मुहैया कराते हुए उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के यथासंभव प्रयास किए जाएं।

2) स्वयंसेवी संगठनों को इस योजना में शामिल किया जाए। बिना किसी भेदभाव के उन्हें वांछित निधि प्रदान की जाए।

यही समय है, जब सरकार को नवीन विचारों और तरीकों को अपनाकर वायरस को फैलने से रोकना है। अपनी कल्याणकारी योजना को कार्यान्वित करने के लिए वीरान पड़े रेल्वे प्लेटफार्म और बस स्टैण्ड को साधन बनाया जा सकता है। अक्षय पात्र जैसे अनेक धार्मिक समूहों के माध्यम से भोजन की व्यवस्था की जा सकती है।

सरकार ने निर्धनों के लिए पहले ही एक पैकेज की घोषणा कर दी है। इस स्थिति से निपटने के लिए दृढ़ और निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है। विपदा से बेरोजगार हुए हमारे नागरिकों के लिए यह राहत देने वाले कार्य होंगे। इनमें देर करने का मतलब असंतोष को बढ़ाने जैसा होगा, जिससे कोविड-19 का रूप और भी भयंकर हो सकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संजय कौल के लेख पर आधारित। 7 अप्रैल, 2020

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