लॉकडाउन के बाद एक आर्थिक शुरूआत

Afeias
23 Apr 2020
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Date:23-04-20

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अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखें, तो स्वतंत्रता के बाद से पहली बार भारत इस प्रकार का आपातकाल देख रहा है। 2008-09 में आया वित्तीय संकट भी भारी था, परन्तु कम से कम हमारे श्रमिक काम पर जा रहे थे, हमारा आर्थिक तंत्र मजबूत था, और सरकारी कोष भी अच्छी स्थिति में था। महामारी के इस दौर में सभी स्थितियां विपरीत हैं। फिर भी सही प्राथमिकताओं और समाधान का निर्धारण करके हम देश को खड़ा रख सकते हैं।

अगर लॉकडाउन के बाद भी वायरस का आतंक समाप्त नहीं होता है, तो हमें पर्याप्त सावधानी और सुरक्षा के साथ एक नई शुरूआत की तैयारी करनी है।

  • सर्वप्रथम, हमें संक्रमण के स्तर के सही डेटा की जानकारी उपलब्ध हो। काम पर वापस आने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच, सुलभ परिवहन, पीपीई, कार्यक्षेत्र में सामाजिक दूरी आदि की सुविधा की व्यवस्था करनी होगी।
  • स्वस्थ युवाओं को सामाजिक दूरी के साथ काम पर लगाया जा सकता है। विनिर्माण उद्योगों में आपूर्ति श्रृंखला को वापस लाने के लिए प्रोत्साहित देना होगा।
  • इस बीच निम्न मध्यवर्गीय जनता के जीवन का इस प्रकार से ख्याल रखा जाए कि वे संकट की अवधि का सामना कर सकें।
  • केन्द्र और राज्यों में सार्वजनिक और गैर सरकारी संगठनों की पहल इस प्रकार की हो कि भोजन, स्वास्थ्य और आश्रय स्थलों की तुरन्त व्यवस्था की जा सके। निजी स्तर पर अगले कुछ माह तक ऋण की अदायगी और मकान किराए को लेकर हड़बड़ी न मचायी जाए।
  • निर्धनों की मदद करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। परन्तु हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका और यूरोप की तरह सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत व्यय करने का बीड़ा नहीं उठा सकती। हम पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। अतः हमें कम महत्वपूर्ण खर्चों में कटौती करते हुए, निवेशकों का विश्वास जीतना होगा। अपनी एक स्वतंत्र आर्थिक परिषद् के गठन की प्रतिबद्धता के साथ सरकार को मध्यावधि ऋण के लक्ष्य को तय करना चाहिए। एन के सिंह समिति ने भी ऐसी ही सिफारिश की है।
  • पिछले कुछ वर्षों से अनेक लघु और मझौले उद्यमों की हालत खराब है। इनके लिए आर्थिक मदद के रूप में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर तथा अन्य साधनों का सहारा लिया जा सकता है। इससे घरों में चलने वाले सूक्ष्म उद्योगों को सर्वाधिक लाभ होगा।

अधिक संख्या में श्रमिकों को रोजगार देने वाले उद्यमों के लिए स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया को कुछ राहतकारी शर्तों के साथ ऋण देने को तैयार करना होगा। सरकार को चाहिए कि इन छोटे उद्यमों के वृद्धिशील बैंक ऋण की पहली हानि का उत्तरदायित्व लेने को तैयार रहे।

इस समय बड़ी फर्में भी छोटे सप्लायर के लिए निधि का इंतजाम कर सकती हैं। ये बांड मार्केट में धन की वृद्धि कर, इसका लाभ आगे दे सकती हैं। दुर्भाग्यवश, आज के कार्पोरेट बांड मार्केट को इससे ज्यादा लेना-देना नहीं है। इसके लिए आरबीआई अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता होगी।

  • निजी फर्मों की वांछित तरलता को बनाए रखने के लिए प्रत्येक सरकारी एजेंसी और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को अपने बिलों का तुरंत भुगतान करना चाहिए।
  • आरबीआई ने बैंकिंग में पहले ही काफी तरलता बना रखी है। ऋण घाटे के लिए और तरलता काम नहीं करेगी। गैर निष्पादित सम्पत्ति बढ़ेगी। बेरोजगारी बढ़ने के साथ रिटेल ऋण भी बढ़ेगा।

सरकार को चाहिए कि वह आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों से अति शीघ्र परामर्श लेकर देश को आर्थिक संकट से ऊबारे। यह कहा ही जाता है कि भारत में संकट के दौरान ही सुधार होते हैं। यह वही उत्तम समय है, जब सरकार को सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को सुधारने की दिशा में तत्परता दिखानी चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रघुराम राजन् के लेख पर आधारित। 6 अप्रैल, 2020

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