यौन अपराधों पर कानून

Afeias
24 Dec 2019
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Date:24-12-19

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मनुस्मृति में कहा गया है-‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।’ हाल ही में देश के उन्नाव और हैदराबाद में दो स्त्रियों के साथ हुए बलात्कार और उसके बाद उन्हें जला दिए जाने की घटनाओं ने “मनुस्मृति” के इस कथन पर विचार करने को मजबूर कर दिया है। यह सत्य है कि दुनिया की आधी आबादी को अगर सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार नहीं दिया जा सकता, तो समाज की रक्षा भी नहीं की जा सकती।

इन सब दृष्टिकोणों को लेकर ही 1860 में भारतीय दंड संहिता में बलात्कार को अपराध की श्रेणी में जोड़ा गया था।

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध या उसकी सहमति के बिना किए गए यौन-व्यवहार को बलात्कार की श्रेणी में दंडात्मक अपराध माना गया। धारा 376 में इसके लिए सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास के दंड का प्रावधान है।

कानून में लैंगिक तटस्थता हो

विधि आयोग ने अपनी 172वीं रिपोर्ट में बलात्कार कानून को विस्तार देते हुए इसे जेंडर न्यूट्रल बनाने की सिफारिश की है। भारत में आज भी यह कानून केवल ‘पुरुषों’ को ही यौन अपराध का दोषी मानता है। इसलिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2002 में संशोधन की आवश्यकता को महसूस किया गया, जिसमें पुरुषों को भी पीड़ित माने जाने का प्रावधान हो।

कानून की सख्ती बढ़ी

2012 में हुए निर्भया कांड के बाद 2013 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया। इसमें यौन अपराधों के लिए कारावास की न्यूनतम अवधि को सात से बढ़ाकर दस वर्ष कर दिया था। पीड़िता की मृत्यु होने या मृतप्राय अवस्था में जीवित रहने पर दोषी के लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया।

एसिड अटैक के लिए कारावास के दंड की अवधि दस वर्ष कर दी गई।

लड़कियों व महिलाओं का पीछा करने, फब्तियां कसने या किसी मायने में उसका सम्मान भंग करने के प्रयत्न को भी दंडात्मक अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया गया।

अल्पवयस्क किशोरियों के प्रति किए गए अपराध पर कानून

2018 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम पारित करके 12 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं के साथ बलात्कार करने पर मृत्युदंड घोषित किया गया है। न्यूनतम दंड के रूप में 20 वर्ष का कारावास दिया जा सकता है।

इसी प्रकार 16वर्ष तक की किशोरियों के प्रति किए जाने वाले अपराधों पर भी कानून सख्त किए गए हैं।

एक अनुमान के अनुसार भारत में अभी भी 54 प्रतिशत बलात्कारों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाती है। पिछले कुछ वर्षों में यौन-अपराधों से संबंधित खबरों के उजागर होने के चलते अब पीड़ितों में इनकी रिपोर्ट दर्ज कराने की जागरुकता और हिम्मत बढ़ी है। उम्मीद की जा सकती है कि कानून की सख्ती का प्रभाव सोच पर पड़ेगा, और इस अपराध को रोके जाने में मदद मिलेगी।

समाचार पत्र व अन्य स्रोतों पर आधारित।